COP29 in Azerbaijan: Key Insights for UPSC

COP29 in Azerbaijan
  1. ग्रीनहाउस गैसों का नियंत्रण: ग्रीनहाउस गैसें ग्लोबल वार्मिंग के मुख्य कारक हैं, जो पर्यावरण को गहरा नुकसान पहुंचाती हैं। इस सम्मेलन में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के उपायों पर जोर दिया जा रहा है।
  2. नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना: कोयला, तेल और अन्य पारंपरिक ऊर्जा स्रोत जलवायु को हानि पहुंचाते हैं। इसलिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और अन्य नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।
  3. जलवायु न्याय और वित्तीय सहायता: विकासशील और अविकसित देशों पर जलवायु परिवर्तन का असर ज्यादा पड़ता है। इन देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि वे भी जलवायु परिवर्तन से निपटने में योगदान दे सकें।
  1. COP3 (क्योटो प्रोटोकॉल, 1997): इस सम्मेलन में “क्योटो प्रोटोकॉल” नामक एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ, जिसमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य निर्धारित किए गए।
  2. COP21 (पेरिस समझौता, 2015): COP21 में पेरिस समझौते पर सहमति बनी, जिसमें वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य रखा गया। यह समझौता जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सबसे बड़ा कदम माना गया।
  3. COP28 (दुबई, 2023): COP28 में कार्बन न्यूट्रैलिटी, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, और विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता पर चर्चा हुई। COP29 में भी COP28 में उठाए गए मुद्दों को विस्तार से देखा जाएगा।
COP29 in Azerbaijan
  • यूरोपीय संघ: नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश बढ़ाना और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करना।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: कार्बन उत्सर्जन को कम करने और स्वच्छ ऊर्जा में निवेश को बढ़ाने की दिशा में कदम उठाना।
  • भारत: जलवायु न्याय का मुद्दा उठाना और विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता की मांग करना।
  • चीन: कार्बन न्यूट्रैलिटी को प्राथमिकता देना और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देना।
  1. राष्ट्रीय सौर मिशन: सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भारत ने यह मिशन शुरू किया है, जिसका उद्देश्य सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाना है।
  2. अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): भारत ने फ्रांस के सहयोग से यह गठबंधन शुरू किया है, जो सौर ऊर्जा का वैश्विक स्तर पर प्रसार करने का प्रयास कर रहा है।
  3. नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (NAPCC): इस योजना के तहत भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आठ प्रमुख मिशनों को अपनाया है। इनमें जल, कृषि, वनों का संरक्षण और ऊर्जा दक्षता जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
  4. जलवायु वित्त में योगदान: भारत ने गरीब देशों को हरित प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग देने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं।
  1. समुद्र स्तर में वृद्धि: समुद्र स्तर में वृद्धि तटीय क्षेत्रों के लिए एक गंभीर समस्या है, जिससे बाढ़ और विस्थापन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
  2. प्राकृतिक आपदाओं की वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता बढ़ रही है।
  3. जैव विविधता पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन वनस्पतियों और जीवों की विभिन्न प्रजातियों के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है। कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
  4. खेती और खाद्य सुरक्षा: जलवायु परिवर्तन का कृषि पर सीधा प्रभाव पड़ता है। फसल उत्पादन में गिरावट से खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग को 1.5°C तक सीमित करने के लिए ठोस कदम: इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नीतिगत सुधार और सभी देशों का सहयोग जरूरी है।
  • विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान: इस सम्मेलन में विकासशील देशों को जलवायु वित्त और तकनीकी सहायता देने के लिए विकसित देशों से अधिक समर्थन की उम्मीद की जा रही है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश: नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सभी देशों से मिलकर प्रयास की अपेक्षा है।
  • जलवायु न्याय: कमजोर देशों और समुदायों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचाने के लिए जलवायु न्याय का अनुपालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

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