संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का 29वां सत्र (COP29) इस वर्ष अज़रबैजान के बाकू में आयोजित हो रहा है। जलवायु परिवर्तन पर हो रही यह वार्षिक बैठक एक ऐसा मंच है जहां दुनिया भर के देश और वैज्ञानिक एकजुट होकर पर्यावरण संरक्षण के लिए उपाय तलाशते हैं। COP29 का मुख्य उद्देश्य वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना और नवीकरणीय ऊर्जा का अधिकतम उपयोग करना है। इस लेख में COP29 की प्रमुख विशेषताओं, इसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, मुख्य मुद्दों और भारत की भूमिका के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। यह जानकारी UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में सहायक सिद्ध हो सकती है।
COP29 का उद्देश्य और महत्व
जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण, मानव जीवन, और आर्थिक गतिविधियों पर गंभीर खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। COP29 का मुख्य उद्देश्य दुनिया के विभिन्न देशों को जलवायु परिवर्तन के खतरे से अवगत कराना और सामूहिक प्रयासों के माध्यम से इसका समाधान निकालना है। सम्मेलन में निम्नलिखित बिंदुओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है:
- ग्रीनहाउस गैसों का नियंत्रण: ग्रीनहाउस गैसें ग्लोबल वार्मिंग के मुख्य कारक हैं, जो पर्यावरण को गहरा नुकसान पहुंचाती हैं। इस सम्मेलन में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के उपायों पर जोर दिया जा रहा है।
- नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना: कोयला, तेल और अन्य पारंपरिक ऊर्जा स्रोत जलवायु को हानि पहुंचाते हैं। इसलिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और अन्य नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।
- जलवायु न्याय और वित्तीय सहायता: विकासशील और अविकसित देशों पर जलवायु परिवर्तन का असर ज्यादा पड़ता है। इन देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि वे भी जलवायु परिवर्तन से निपटने में योगदान दे सकें।
COP29 का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
COP सम्मेलन की शुरुआत वर्ष 1995 में हुई थी। इसे संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के तहत पार्टियों का सम्मेलन कहा गया। UNFCCC का उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरणीय संकट से निपटना है। समय के साथ जलवायु परिवर्तन के प्रति बढ़ती जागरूकता ने COP सम्मेलनों को महत्वपूर्ण बनाया है। आइए, कुछ प्रमुख COP सम्मेलनों पर एक नज़र डालते हैं:
- COP3 (क्योटो प्रोटोकॉल, 1997): इस सम्मेलन में “क्योटो प्रोटोकॉल” नामक एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ, जिसमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य निर्धारित किए गए।
- COP21 (पेरिस समझौता, 2015): COP21 में पेरिस समझौते पर सहमति बनी, जिसमें वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य रखा गया। यह समझौता जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सबसे बड़ा कदम माना गया।
- COP28 (दुबई, 2023): COP28 में कार्बन न्यूट्रैलिटी, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, और विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता पर चर्चा हुई। COP29 में भी COP28 में उठाए गए मुद्दों को विस्तार से देखा जाएगा।
COP29 के प्रमुख मुद्दे
COP29 में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा की जा रही है। इनमें से कुछ प्रमुख मुद्दे इस प्रकार हैं:
1. ग्लोबल वार्मिंग को 1.5°C तक सीमित रखना
वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इस बात पर सहमत हैं कि अगर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने दिया गया, तो इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन से समुद्र स्तर में वृद्धि, अत्यधिक गर्मी, बाढ़ और सूखे जैसी घटनाएं बढ़ने की संभावना होती है। COP29 में देशों को 1.5°C के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने और इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।
2. नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए COP29 में विशेष ध्यान दिया जा रहा है। यह सम्मेलन नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करेगा और इसका उपयोग बढ़ाने के लिए देशों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने का आश्वासन देगा।
3. विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त
विकासशील देशों के पास जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन और तकनीकी साधन नहीं होते हैं। ऐसे में इन देशों को वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। COP29 में विकसित देशों से अपेक्षा की जा रही है कि वे विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करें ताकि वे भी जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी भूमिका निभा सकें।
4. जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन उपाय
जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा और समुद्र स्तर में वृद्धि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इन समस्याओं का सामना करने के लिए अनुकूलन योजनाओं की आवश्यकता है। COP29 में, बाढ़-सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयारी और पुनर्निर्माण की योजनाओं पर चर्चा की जाएगी। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से प्रभावित लोगों के पुनर्वास पर भी विचार किया जाएगा।
5. हरित प्रौद्योगिकी का विकास और प्रसार
हरित प्रौद्योगिकी का उपयोग जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण हथियार है। इस सम्मेलन में हरित प्रौद्योगिकी में निवेश को बढ़ावा देने, और विकसित देशों द्वारा गरीब देशों को हरित तकनीक में सहायता प्रदान करने पर चर्चा होगी।
COP29 में भाग लेने वाले देश और उनके उद्देश्य
COP29 में करीब 190 से अधिक देश भाग ले रहे हैं। सभी देश अपने-अपने उद्देश्य और प्राथमिकताओं को लेकर सम्मेलन में शामिल हुए हैं। कुछ प्रमुख देशों के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- यूरोपीय संघ: नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश बढ़ाना और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करना।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: कार्बन उत्सर्जन को कम करने और स्वच्छ ऊर्जा में निवेश को बढ़ाने की दिशा में कदम उठाना।
- भारत: जलवायु न्याय का मुद्दा उठाना और विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता की मांग करना।
- चीन: कार्बन न्यूट्रैलिटी को प्राथमिकता देना और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देना।
भारत की भूमिका और योगदान
भारत एक विकासशील देश है, फिर भी जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भारत ने विभिन्न कदम उठाए हैं। भारत ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण योजनाओं और पहलों को अपनाया है:
- राष्ट्रीय सौर मिशन: सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भारत ने यह मिशन शुरू किया है, जिसका उद्देश्य सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाना है।
- अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): भारत ने फ्रांस के सहयोग से यह गठबंधन शुरू किया है, जो सौर ऊर्जा का वैश्विक स्तर पर प्रसार करने का प्रयास कर रहा है।
- नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (NAPCC): इस योजना के तहत भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आठ प्रमुख मिशनों को अपनाया है। इनमें जल, कृषि, वनों का संरक्षण और ऊर्जा दक्षता जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- जलवायु वित्त में योगदान: भारत ने गरीब देशों को हरित प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग देने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं।
COP29 में भारत अपनी इन योजनाओं और पहलों को प्रस्तुत करेगा, और जलवायु न्याय के मुद्दों पर जोर देगा ताकि विकसित देशों से विकासशील देशों को अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त हो सके।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव व्यापक है, जो न केवल पर्यावरण बल्कि सामाजिक और आर्थिक ढांचे को भी प्रभावित करता है। जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं:
- समुद्र स्तर में वृद्धि: समुद्र स्तर में वृद्धि तटीय क्षेत्रों के लिए एक गंभीर समस्या है, जिससे बाढ़ और विस्थापन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
- प्राकृतिक आपदाओं की वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता बढ़ रही है।
- जैव विविधता पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन वनस्पतियों और जीवों की विभिन्न प्रजातियों के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है। कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
- खेती और खाद्य सुरक्षा: जलवायु परिवर्तन का कृषि पर सीधा प्रभाव पड़ता है। फसल उत्पादन में गिरावट से खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
COP29 से उम्मीदें
COP29 से कई अपेक्षाएँ हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- ग्लोबल वार्मिंग को 1.5°C तक सीमित करने के लिए ठोस कदम: इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नीतिगत सुधार और सभी देशों का सहयोग जरूरी है।
- विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान: इस सम्मेलन में विकासशील देशों को जलवायु वित्त और तकनीकी सहायता देने के लिए विकसित देशों से अधिक समर्थन की उम्मीद की जा रही है।
- नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश: नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सभी देशों से मिलकर प्रयास की अपेक्षा है।
- जलवायु न्याय: कमजोर देशों और समुदायों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचाने के लिए जलवायु न्याय का अनुपालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
COP29 का आयोजन एक महत्वपूर्ण अवसर है, जहां दुनिया भर के देश जलवायु संकट से निपटने के लिए एकजुट हुए हैं। यह सम्मेलन न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक कदमों को प्रस्तुत करता है, बल्कि वैश्विक सहयोग को भी बढ़ावा देता है। अज़रबैजान में आयोजित इस COP29 के निर्णय और प्रयास हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और सतत भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
यह लेख UPSC की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय समझौते, भारत की भूमिका और COP29 के मुख्य मुद्दों का गहन विश्लेषण किया गया है। COP29 के निष्कर्ष और प्रगति हमें जलवायु संकट से उबरने में मार्गदर्शन प्रदान करेंगे।
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