पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment – EIA) पर्यावरणीय शासन और सतत विकास के लिए एक अत्यावश्यक प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य प्रस्तावित परियोजनाओं के संभावित पर्यावरणीय परिणामों का मूल्यांकन करना है, ताकि आर्थिक विकास पर्यावरणीय क्षरण की कीमत पर न हो। भारत में, जहां तीव्र औद्योगिकीकरण और शहरीकरण चल रहा है, EIA विकास की आवश्यकता और पारिस्थितिक संरक्षण के बीच संतुलन बनाने का एक प्रमुख उपकरण है। यह लेख भारत में EIA की अवधारणा, महत्व, प्रक्रिया, चुनौतियों और सुधारों की चर्चा करता है, जिसमें इसके सतत विकास में भूमिका पर जोर दिया गया है।
पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment) को समझना
पर्यावरण प्रभाव आकलन प्रस्तावित परियोजनाओं, योजनाओं या नीतियों के पर्यावरणीय परिणामों की भविष्यवाणी करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक औपचारिक प्रक्रिया है। यह एक निवारक और निर्णय लेने वाला उपकरण है जो नीति निर्माताओं, हितधारकों और आम जनता को परियोजना के लाभों की तुलना में इसके पर्यावरणीय लागतों का आकलन करने में मदद करता है।
EIA (Environmental Impact Assessment) के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- परियोजनाओं के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों की पहचान और मूल्यांकन करना।
- प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए शमन उपायों का प्रस्ताव करना।
- यह सुनिश्चित करना कि निर्णय-निर्माता आर्थिक और सामाजिक कारकों के साथ पर्यावरणीय निहितार्थों पर विचार करें।
EIA का महत्व केवल तकनीकी मूल्यांकन तक ही सीमित नहीं है। यह प्रक्रिया सामाजिक और आर्थिक विकास में पर्यावरणीय पहलुओं को एकीकृत करती है, जिससे परियोजनाएं न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से संतुलित रहती हैं बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए दीर्घकालिक लाभ भी सुनिश्चित करती हैं। यह आर्थिक और सामाजिक विकास में पर्यावरणीय विचारों को एकीकृत करने के लिए एक ढांचा प्रदान करता है। यह विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देश में महत्वपूर्ण है, जहां पर्यावरणीय संसाधन आजीविका और सांस्कृतिक प्रथाओं को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में (Environmental Impact Assessment) का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत में EIA की अवधारणा 1978 में जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के साथ शुरू हुई। हालांकि, EIA का औपचारिक ढांचा 1986 के पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के साथ स्थापित किया गया। इस अधिनियम ने केंद्र सरकार को पर्यावरण की रक्षा और सुधार के उपाय करने का अधिकार दिया।
1994 में, पर्यावरण और वन मंत्रालय (MoEF) ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के तहत पहला EIA अधिसूचना जारी किया। इस अधिसूचना ने विभिन्न परियोजनाओं के लिए पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी को अनिवार्य कर दिया, जिससे भारत में EIA प्रक्रिया को संस्थागत रूप दिया गया। 2006 में EIA अधिसूचना में संशोधन ने इस प्रक्रिया को अधिक भागीदारीपूर्ण और पारदर्शी बना दिया।
वर्षों के दौरान, EIA (Environmental Impact Assessment) प्रक्रिया ने न केवल पर्यावरणीय सुरक्षा बल्कि सामाजिक और आर्थिक कारकों को भी शामिल किया। यह स्पष्ट हुआ कि पर्यावरण और विकास एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।
भारत में EIA (Environmental Impact Assessment) की प्रक्रिया
भारत में EIA (Environmental Impact Assessment) प्रक्रिया में कई चरण शामिल होते हैं, जो पर्यावरणीय प्रभावों के व्यापक मूल्यांकन को सुनिश्चित करते हैं। ये चरण निम्नलिखित हैं:
1. स्क्रीनिंग:
परियोजनाओं को उनके पैमाने, प्रकार और संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। श्रेणी ए की परियोजनाएं, जो महत्वपूर्ण प्रभाव डालने की संभावना रखती हैं, को केंद्रीय सरकार से मंजूरी की आवश्यकता होती है, जबकि श्रेणी बी की परियोजनाओं को राज्य प्राधिकरणों द्वारा मंजूरी दी जाती है।
2. स्कोपिंग:
इस चरण में, परियोजना से संबंधित प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों की पहचान की जाती है। संदर्भ की शर्तें (ToR) विकसित की जाती हैं, जो EIA रिपोर्ट के लिए आवश्यक अध्ययन और डेटा को निर्दिष्ट करती हैं।
3. सार्वजनिक परामर्श:
यह एक महत्वपूर्ण चरण है, जहां स्थानीय समुदाय, हितधारक और आम जनता परियोजना के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर अपनी प्रतिक्रिया प्रदान करते हैं। सार्वजनिक सुनवाई आयोजित की जाती है और लिखित प्रतिक्रियाओं पर भी विचार किया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल स्थानीय लोगों को सशक्त बनाती है, बल्कि परियोजना प्रस्तावों में सुधार के लिए उनके सुझावों को भी शामिल करती है।
4. EIA (Environmental Impact Assessment) रिपोर्ट तैयार करना:
ToR और सार्वजनिक परामर्श के आधार पर, एक विस्तृत EIA रिपोर्ट तैयार की जाती है। यह दस्तावेज़ परियोजना का वर्णन, आधारभूत पर्यावरणीय डेटा, प्रभाव आकलन और प्रस्तावित शमन उपाय शामिल करता है।
5. मूल्यांकन और निर्णय लेना:
विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) EIA रिपोर्ट और सार्वजनिक प्रतिक्रिया की समीक्षा करती है। यह समिति परियोजना के पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं का गहन अध्ययन करती है। इसके निर्णय पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने, परियोजना की व्यवहार्यता सुनिश्चित करने और स्थानीय समुदायों की चिंताओं को संबोधित करने पर आधारित होते हैं। उनकी सिफारिशों के आधार पर, नियामक प्राधिकरण पर्यावरणीय मंजूरी देता है या अस्वीकार करता है।
6. निगरानी और अनुपालन:
मंजूरी के बाद, परियोजना की निगरानी की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पर्यावरणीय प्रबंधन योजनाओं और शमन उपायों का पालन किया जा रहा है। समय-समय पर परियोजना का ऑडिट किया जाता है।
भारत में EIA (Environmental Impact Assessment) का महत्व
भारत के विविध पारिस्थितिक तंत्र और बढ़ती जनसंख्या अद्वितीय पर्यावरणीय चुनौतियां प्रस्तुत करते हैं। EIA प्रक्रिया इन चुनौतियों को संबोधित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
1. प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा:
EIA यह सुनिश्चित करता है कि परियोजनाएं संसाधनों का न्यूनतम शोषण करें और जैव विविधता को नुकसान से बचाएं। उदाहरण के लिए, वन क्षेत्र में परियोजनाओं को अनुमति देने से पहले वनस्पतियों और जीवों पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन किया जाता है।
2. पर्यावरणीय क्षति को कम करना:
यह संभावित जोखिमों की पहचान करता है और प्रदूषण, वनों की कटाई और आवास विनाश को कम करने के उपायों का प्रस्ताव करता है।
3. सतत विकास को बढ़ावा देना:
आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के बीच संतुलन बनाकर, EIA दीर्घकालिक स्थिरता हासिल करने में मदद करता है। टिकाऊ परियोजनाएं न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से लाभकारी होती हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका के अवसर भी पैदा करती हैं।
4. कानूनी विवादों से बचाव:
पर्यावरणीय स्वीकृति प्रक्रिया के माध्यम से कानूनी विवादों की संभावना को कम किया जाता है।
5. सार्वजनिक जागरूकता और सहभागिता:
EIA प्रक्रिया के दौरान स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। यह प्रक्रिया सार्वजनिक सुनवाई, सामुदायिक बैठकें और स्थानीय भाषाओं में सूचना प्रसार के माध्यम से सक्षम की जाती है। यह भागीदारी परियोजना की स्वीकृति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाती है और निर्णय लेने में स्थानीय दृष्टिकोण को शामिल करती है। यह न केवल जनता को सशक्त करता है, बल्कि उन्हें पर्यावरणीय महत्व के बारे में भी जागरूक करता है।
चुनौतियाँ और सुधार
1. प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी:
EIA रिपोर्ट और प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी अक्सर विवादों का कारण बनती है। सरकार और परियोजना प्रायोजकों को डेटा साझा करने और जनता को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
2. क्षमता निर्माण:
ईआईए से जुड़े विशेषज्ञों और अधिकारियों को उन्नत प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। इस प्रशिक्षण में नवीनतम तकनीकों, GIS और डेटा विश्लेषण जैसे उपकरणों का उपयोग, और स्थानीय पर्यावरणीय मुद्दों को समझने पर ध्यान दिया जा सकता है। इसके अलावा, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध सफल परियोजनाओं के अध्ययन के माध्यम से उन्हें व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना भी प्रभावी हो सकता है। इससे परियोजना मूल्यांकन की गुणवत्ता में सुधार होगा।
निष्कर्ष
पर्यावरण प्रभाव आकलन विकास और संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने का एक अनिवार्य उपकरण है। इसे और प्रभावी बनाने के लिए पारदर्शिता, भागीदारी और निगरानी के मानकों को मजबूत करना होगा। सतत विकास की दिशा में EIA की सफलता भारत के पर्यावरणीय और आर्थिक लक्ष्यों को संतुलित कर सकती है।
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