प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs) समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये समुद्री जीवन के लिए आश्रय प्रदान करती हैं और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में सहायक होती हैं। प्रवाल भित्तियाँ न केवल जैव विविधता का संरक्षण करती हैं, बल्कि मछली पालन, पर्यटन और तटीय सुरक्षा जैसी गतिविधियों में भी योगदान देती हैं। इनका आर्थिक महत्त्व भी अनन्य है, क्योंकि यह मछुआरों की आजीविका और पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देती हैं। हालाँकि, बढ़ते जलवायु परिवर्तन, समुद्री प्रदूषण, और मानवजनित गतिविधियों के कारण प्रवाल भित्तियाँ गंभीर संकट का सामना कर रही हैं।
प्रवाल भित्तियाँ महासागरों की ‘रेनफॉरेस्ट’ कही जाती हैं, क्योंकि ये समुद्री जैव विविधता का केंद्र हैं। लेकिन इनका महत्व केवल जैव विविधता तक सीमित नहीं है; ये हमारी जलवायु, अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना को भी प्रभावित करती हैं। इस लेख में हम प्रवाल भित्तियों की पुनर्स्थापना के वैश्विक प्रयासों और भारत की भूमिका पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
प्रवाल भित्तियों (Coral Reefs) का महत्त्व
- जैव विविधता का संरक्षण: प्रवाल भित्तियाँ समुद्री जीवन के लिए निवास स्थान हैं। ये समुद्री मछलियों, कछुओं, और अन्य जीवों को भोजन और प्रजनन के लिए स्थान प्रदान करती हैं। यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रवाल भित्तियों की संरचना इतनी जटिल होती है कि यह हजारों प्रजातियों को सह-अस्तित्व का अवसर प्रदान करती है।
- तटीय सुरक्षा: प्रवाल भित्तियाँ समुद्र की लहरों की शक्ति को कम करके तटीय क्षेत्रों की रक्षा करती हैं। यह समुद्री कटाव को रोकने में सहायक होती हैं और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और तूफानों के प्रभाव को कम करती हैं। इनकी अनुपस्थिति में तटीय इलाकों को अधिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
- आर्थिक योगदान: प्रवाल भित्तियों से मछली पालन, पर्यटन और अन्य उद्योगों को लाभ होता है। प्रवाल भित्तियों पर आधारित पर्यटन उद्योग कई देशों की अर्थव्यवस्था में योगदान करता है। साथ ही, ये स्थानीय समुदायों की आजीविका का एक प्रमुख स्रोत हैं।
- कार्बन अवशोषण: प्रवाल भित्तियाँ समुद्र के पानी से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद करती हैं। इनकी क्षति से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ सकती है।
प्रवाल भित्तियों (Coral Reefs) पर खतरे
- जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में वृद्धि से समुद्री जल का तापमान बढ़ रहा है, जिससे प्रवाल भित्तियों में विरंजन (Coral Bleaching) हो रहा है। यह प्रक्रिया प्रवाल के लिए घातक साबित हो सकती है, क्योंकि इससे उनकी जीवनशक्ति समाप्त हो जाती है।
- प्रदूषण: औद्योगिक कचरा, कृषि अपशिष्ट, और प्लास्टिक प्रदूषण से प्रवाल भित्तियाँ प्रभावित हो रही हैं। समुद्र में बढ़ता तेल रिसाव और जहाजों का कचरा भी प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुँचाता है।
- अतिशक्ति मछली पालन: अत्यधिक मछली पालन और अवैध मछली पकड़ने की गतिविधियों से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो रहा है। इससे प्रवाल भित्तियों पर निर्भर प्रजातियाँ संकट में आ जाती हैं।
- मानवीय गतिविधियाँ: तटीय विकास, जहाजरानी, और पर्यटन गतिविधियाँ प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुँचा रही हैं। इसके अलावा, रासायनिक कचरे और मलबे का निपटान भी समुद्री जीवन को खतरे में डालता है।
- समुद्र स्तर में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे प्रवाल भित्तियों की संरचना कमजोर हो रही है।
प्रवाल भित्तियों (Coral Reefs) की पुनर्स्थापना के वैश्विक प्रयास
- ग्रीन फिन्स पहल: यह एक वैश्विक पहल है जो प्रवाल भित्तियों के संरक्षण के लिए सतत पर्यटन को बढ़ावा देती है। इसका उद्देश्य समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखना और स्थानीय समुदायों को आर्थिक लाभ प्रदान करना है।
- कोरल रीफ अलायंस: यह संगठन प्रवाल भित्तियों के संरक्षण के लिए समुदाय आधारित कार्यक्रमों का संचालन करता है। यह प्रवाल भित्तियों को स्थायी रूप से पुनर्जीवित करने की दिशा में काम करता है।
- ग्लोबल कोरल रीफ मॉनिटरिंग नेटवर्क: यह नेटवर्क प्रवाल भित्तियों की स्थिति का अध्ययन और निगरानी करता है। इसका लक्ष्य प्रवाल भित्तियों के स्वास्थ्य का आकलन करना और उनके संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाना है।
- रीफ-2050 प्लान (ऑस्ट्रेलिया): ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने ग्रेट बैरियर रीफ के संरक्षण के लिए यह योजना शुरू की है। यह योजना समुद्री प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के प्रभाव को कम करने पर केंद्रित है।
- सीडिंग और नर्सरी तकनीक: वैज्ञानिक प्रवाल भित्तियों की पुनर्स्थापना के लिए प्रवाल बीज और नर्सरी तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। इन तकनीकों से प्रवाल भित्तियों के पुनर्जीवन में तेजी लाई जा रही है।
- संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य: सतत विकास के लक्ष्यों में समुद्री जीवन और प्रवाल भित्तियों के संरक्षण को प्रमुखता दी गई है।
भारत में प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs)
भारत में प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs) मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में पाई जाती हैं:
- लक्षद्वीप और मिनिकॉय द्वीप: यहाँ प्रवाल भित्तियाँ व्यापक रूप से पाई जाती हैं। यह क्षेत्र भारतीय महासागर में जैव विविधता का केंद्र है।
- अंडमान और निकोबार द्वीप: यह क्षेत्र प्रवाल भित्तियों के लिए जैव विविधता से भरपूर है। यहाँ की प्रवाल भित्तियाँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध करती हैं।
- तमिलनाडु और गुजरात तट: पंबन द्वीप और कच्छ की खाड़ी में प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं। ये क्षेत्र भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भारत द्वारा प्रवाल भित्तियों की पुनर्स्थापना के प्रयास
- राष्ट्रीय प्रवाल भित्ति कार्यक्रम (National Coral Reef Programme): यह कार्यक्रम प्रवाल भित्तियों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए संचालित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य प्रवाल भित्तियों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करना है।
- संवेदनशील क्षेत्र की पहचान: भारत सरकार ने प्रवाल भित्तियों को पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया है। इन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की हानिकारक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया गया है।
- समुद्री जैव विविधता संरक्षण: समुद्री जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए भारत ने कई समुद्री अभयारण्य स्थापित किए हैं। ये अभयारण्य प्रवाल भित्तियों के संरक्षण में सहायक हैं।
- समुद्री अनुसंधान संस्थान: राष्ट्रीय समुद्री जैव विविधता केंद्र (National Centre for Coastal Research) और अन्य संस्थान प्रवाल भित्तियों पर अनुसंधान कर रहे हैं। इन अनुसंधानों का उद्देश्य प्रवाल भित्तियों के स्वास्थ्य में सुधार लाना है।
- सतत पर्यटन: लक्षद्वीप और अंडमान द्वीप समूह में सतत पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह स्थानीय समुदायों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करता है और प्रवाल भित्तियों पर दबाव को कम करता है।
प्रवाल भित्तियों की पुनर्स्थापना के लिए सुझाव
- समुद्री प्रदूषण का नियंत्रण: समुद्री प्रदूषण को रोकने के लिए कड़े नियमों को लागू करना आवश्यक है। इसके साथ ही, औद्योगिक और घरेलू कचरे के निपटान के लिए बेहतर तकनीकों का उपयोग करना चाहिए।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी: प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के लिए स्थानीय समुदायों को जोड़ना आवश्यक है। उनकी भागीदारी से संरक्षण प्रयासों में स्थिरता आ सकती है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटना: कार्बन उत्सर्जन को कम करने और हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। सरकारों और उद्योगों को इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
- वैज्ञानिक अनुसंधान: प्रवाल भित्तियों के पुनर्स्थापना के लिए आधुनिक तकनीकों और अनुसंधान को प्रोत्साहन देना चाहिए। इससे उनके स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है।
- शिक्षा और जागरूकता: लोगों को प्रवाल भित्तियों के महत्व और संरक्षण के उपायों के प्रति जागरूक करना आवश्यक है।
निष्कर्ष
प्रवाल भित्तियाँ पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र का अमूल्य हिस्सा हैं। इनका संरक्षण न केवल समुद्री जीवन के लिए आवश्यक है, बल्कि मानव जीवन की गुणवत्ता के लिए भी महत्वपूर्ण है। वैश्विक स्तर पर और भारत में प्रवाल भित्तियों की पुनर्स्थापना के प्रयास सराहनीय हैं। हालांकि, इन प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए सरकार, वैज्ञानिक समुदाय, और आम जनता को मिलकर काम करना होगा। सतत विकास के साथ ही प्रवाल भित्तियों का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सकता है।
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