भारत में अनेक पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं, जो न केवल सांस्कृतिक बल्कि धार्मिक महत्व भी रखते हैं। ऐसे ही कुछ पर्वों में धनतेरस और राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस का महत्वपूर्ण स्थान है। यह दोनों पर्व हमें भारतीय चिकित्सा पद्धति के जनक, भगवान धन्वंतरि की याद दिलाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान धन्वंतरि का कौन हैं, उनके बारे में क्या कहा गया है और क्यों धनतेरस और राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस का उनसे संबंध है? इस लेख में हम इन प्रश्नों का विस्तार से उत्तर देंगे और भगवान धन्वंतरि के महत्व पर चर्चा करेंगे।
धनतेरस का महत्व और पौराणिक कथा
धनतेरस, जिसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है, भारतीय दीपावली पर्व का पहला दिन होता है। यह दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है। “धन” का अर्थ है संपत्ति, और “तेरस” का अर्थ है तेरहवां दिन। यह दिन विशेष रूप से समृद्धि और आरोग्यता की कामना के लिए मनाया जाता है। धनतेरस के दिन देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
धनतेरस का यह पर्व हमारे जीवन में समृद्धि और स्वास्थ्य की अभिलाषा का प्रतीक है। माना जाता है कि इस दिन घर में कोई नई वस्तु खरीदना विशेष रूप से शुभ होता है। लोग इस दिन बर्तन, सोना, चांदी, और अन्य कीमती वस्तुएं खरीदते हैं ताकि जीवन में सौभाग्य और सुख-समृद्धि बनी रहे। प्राचीन मान्यता के अनुसार, इस दिन घर में नई वस्तु लाने से लक्ष्मी माता प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-शांति और संपन्नता का वास होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे, और इसीलिए यह दिन उनकी पूजा के लिए भी समर्पित है। उन्हें आरोग्यता के देवता और आयुर्वेद के जनक के रूप में सम्मानित किया गया है। माना जाता है कि धनतेरस के दिन उनकी पूजा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
भगवान धन्वंतरि कौन हैं?
भगवान धन्वंतरि को हिंदू धर्म में आरोग्य और चिकित्सा के देवता माना जाता है। उनका जन्म समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश के साथ हुआ था, और इसीलिए उन्हें अमरत्व और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है। वे चार भुजाओं वाले एक दिव्य पुरुष के रूप में चित्रित होते हैं, जिनके एक हाथ में अमृत का कलश होता है, दूसरे हाथों में औषधियां और शंख होते हैं। उनके शरीर से एक दिव्य प्रकाश निकलता है, जो उनके अमरत्व और अद्वितीय चिकित्सा ज्ञान को दर्शाता है।
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना गया है, क्योंकि उन्होंने ही मानव जाति को रोगों के उपचार और स्वास्थ्य रक्षा का ज्ञान दिया। माना जाता है कि भगवान धन्वंतरि ने ही आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों की स्थापना की, जिससे न केवल रोगों का उपचार संभव हो पाया बल्कि स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ।
धन्वंतरि के आशीर्वाद से ही आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का जन्म हुआ, जोकि जीवन के संतुलन और स्वास्थ्य को बनाए रखने की एक प्राचीन भारतीय प्रणाली है। वे इस पद्धति के ऐसे पुरोधा माने जाते हैं, जिन्होंने हमें प्रकृति से जुड़ी औषधियों का ज्ञान दिया और रोगों से मुक्ति के उपाय बताए।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस: एक स्वस्थ जीवन के प्रति जागरूकता का पर्व
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की शुरुआत भारत सरकार ने 2016 में की थी। इसका उद्देश्य आयुर्वेद के ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना और लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों के प्रति जागरूक करना है। हर साल यह दिवस धनतेरस के दिन मनाया जाता है, ताकि भगवान धन्वंतरि को सम्मान दिया जा सके और आयुर्वेद के महत्व को जन-जन तक पहुंचाया जा सके।
आयुर्वेद, जिसे जीवन का विज्ञान कहा जाता है, शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को बनाए रखने पर जोर देता है। आयुर्वेद के मूल सिद्धांत के अनुसार, शरीर पंचमहाभूतों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – से बना है और इनका संतुलन हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। आयुर्वेद का उद्देश्य न केवल रोगों का उपचार करना है बल्कि स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने की शिक्षा देना भी है।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों, जैसे आयुर्वेदिक शिविरों, कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन किया जाता है, जहां लोगों को प्राकृतिक उपचार पद्धतियों के बारे में जागरूक किया जाता है। इस दिन को मनाने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें और रसायनों पर निर्भरता कम करके प्रकृति से जुड़ी औषधियों और उपचार पद्धतियों को अपनाएं।
भगवान धन्वंतरि और आयुर्वेद का गहरा संबंध
भगवान धन्वंतरि का जन्म और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही आयुर्वेद के मूल स्तंभ हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार, रोगों का कारण शरीर में दोषों का असंतुलन होता है। यह दोष तीन प्रकार के होते हैं – वात, पित्त और कफ। आयुर्वेदिक उपचार पद्धति का उद्देश्य इन दोषों का संतुलन बनाना और शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखना है।
भगवान धन्वंतरि ने हमें यह सिखाया कि एक स्वस्थ जीवन के लिए केवल बाहरी औषधियों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है; बल्कि अपने शरीर और मन के संतुलन को बनाए रखना भी आवश्यक है। उनका मानना था कि एक स्वस्थ जीवन के लिए न केवल शरीर का स्वस्थ होना जरूरी है बल्कि मन और आत्मा का भी शुद्ध और संतुलित होना आवश्यक है।
आयुर्वेद हमें यह सिखाता है कि प्रकृति में हर समस्या का समाधान है। चाहे वह जड़ी-बूटियां हों, पेड़-पौधे हों या फिर भोजन की आदतें हों, प्रत्येक चीज में हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की शक्ति होती है। भगवान धन्वंतरि का संदेश है कि हम अपने आसपास की प्रकृति से सीखें और आयुर्वेदिक पद्धति के माध्यम से अपनी जीवनशैली में सुधार लाएं।
धनतेरस और भगवान धन्वंतरि का संबंध
धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि इसी दिन वे समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। उनका यह अमृत कलश अमरत्व और स्वास्थ्य का प्रतीक है। भगवान धन्वंतरि का इस दिन प्रकट होना एक तरह से चिकित्सा विज्ञान और स्वास्थ्य का पर्व बन गया है। लोग इस दिन उनकी पूजा करके अपने जीवन में स्वस्थ रहने की कामना करते हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।
इस दिन पूजा के साथ बर्तन या धातु की वस्तुओं की खरीदारी भी एक शुभ कार्य माना जाता है। लोग चांदी, तांबा, और अन्य धातुओं के बर्तन खरीदते हैं, जो स्वास्थ्य और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि के आशीर्वाद से ये वस्तुएं हमारे जीवन में सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य का संचार करती हैं।
कैसे मनाएं धनतेरस और आयुर्वेद दिवस
धनतेरस और राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस को एक साथ मनाकर हम न केवल स्वास्थ्य बल्कि समृद्धि का भी आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। यहां कुछ तरीके दिए गए हैं, जिनसे आप इस दिन को खास बना सकते हैं:
- भगवान धन्वंतरि की पूजा: धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करें। उनके सामने दीप जलाएं और उनसे स्वास्थ्य एवं सुख-शांति की प्रार्थना करें। आप चाहें तो इस दिन भगवान धन्वंतरि के मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं।
- नए बर्तन या धातु की वस्तुओं की खरीदारी: इस दिन बर्तन या धातु की वस्तुएं खरीदना शुभ माना जाता है। आप सोना, चांदी, तांबा या स्टील के बर्तन खरीद सकते हैं, जो समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक हैं।
- आयुर्वेदिक पद्धतियों को अपनाएं: इस दिन आप आयुर्वेदिक जीवनशैली को अपने जीवन में शामिल करने का संकल्प लें। स्वस्थ रहने के लिए हल्दी, त्रिफला, अश्वगंधा जैसी आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करना शुरू करें।
- योग और प्राणायाम का अभ्यास: योग और प्राणायाम शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी होते हैं। इस दिन इन्हें अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएं और शरीर और मन की शुद्धि का अनुभव करें।
- आयुर्वेदिक स्वास्थ्य शिविरों में भाग लें: आयुर्वेद दिवस पर कई जगहों पर आयुर्वेदिक स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन होता है। इन शिविरों में भाग लेकर आप अपनी स्वास्थ्य समस्याओं का आयुर्वेदिक समाधान पा सकते हैं।
निष्कर्ष
धनतेरस और राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस न केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व हैं, बल्कि यह हमारे जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और संतुलन का प्रतीक भी हैं। भगवान धन्वंतरि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए और उनके सिद्धांतों का पालन करते हुए हम एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकते हैं।
भगवान धन्वंतरि के माध्यम से हमें यह संदेश मिलता है कि प्रकृति हमें स्वास्थ्य और दीर्घायु प्रदान कर सकती है। हमें आयुर्वेद का सहारा लेकर और संतुलित जीवनशैली अपनाकर अपने जीवन को स्वस्थ और समृद्ध बनाना चाहिए। इस धनतेरस और राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस पर हम सभी यह संकल्प लें कि हम अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखेंगे, आयुर्वेदिक पद्धतियों का पालन करेंगे और भगवान धन्वंतरि के ज्ञान का सम्मान करेंगे।
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