NEW GENETIC TEST FOR HEREDITARY CANCERS | IN HINDI |

कैंसर एक बहुत ही भयानक बीमारी है। बहुत कम लोग होते है जो इसकी चपेट में आने के बाद बच पते है। कई लोगो को कैंसर समय के साथ होते है तो कई कैंसर वंशानुगत होते है। इन्ही वंशानुगत कैंसर का पता लगाने के लिए शोध करने वालो ने एक नयी जाँच विकसित की है। यही हमारा आज का लेख NEW GENETIC TEST FOR HEREDITARY CANCERS है। इसमें हम जानेंगे की यह जाँच कैसे काम करती है और इसकी क्या उपयोगिता है। 

NEW GENETIC TEST FOR HEREDITARY CANCERS

द जर्नल ऑफ़ मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक्स के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी जाँच का अविष्कार किया है जो अनुवांशिक कमियों के रोग, गर्भ से सम्बंधित व अन्य कैंसर का पता लगाने में सक्षम है। 

शोधकर्ताओ ने एक ऐसे डीएनए-अनुक्रमण प्रोटोकॉल का निर्माण किया है जिसके द्धारा बड़ी आंत, एंडोमेट्रियल और अन्य कैंसर के कारण और उनकी उपस्तिथि का पता लगाया जा सकता है। इस प्रोटोकॉल का नाम MultiMMR रखा गया है। इस जाँच के द्धारा बेमेल रिपेयर की उपस्तिथि का भी पता लगाया जा सकता है जो कि अभी तक उपस्थित जाँच के द्धारा संभव नहीं था। 

MMR जीन सामान्य सेल प्रतिकृति और पुनर्संयोजन में होने वाली त्रुटियों की निगरानी और मरम्मत करते हैं। कुछ अनुवांशिक और अधिग्रहित कैंसर के केस में यह MMR निष्क्रिय हो जाते है। MMR का प्रभाव बहुत ही व्यापक होता है। MMR की कमी से बनने वाले TUMORS कैंसर थेरेपी के प्रति उचित प्रतिक्रिया देते है। 

चिकित्सको के लिये यह सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है कि बीमारी MMR की कमी से हुई है और अनुवांशिक है। इसका पता लग जाने पर चिकित्सक परिवार के अन्य लोगो कि अनुवांशिक जाँच करवा सकेंगे। इस प्रक्रिया से संभावित रोगियों में समय से सुधार आ सकता है। 

पुरानी जाँच के तरीके की कमियाँ:-

MMR कमी का पता लगाने के लिये की गयी पारम्परिक जाँच असंगत हो सकती है। इतना ही नहीं रोगी को कई अन्य जाँच भी करवानी पड़ती है। जिसके परिणामस्वरूप रोगियों के लिए उप-चिकित्सा देखभाल  की जरूरत होती है। अगली पीढ़ी के अनुक्रमण जाँच के तरीको ने लोकप्रियता हासिल की है तथा नैदानिक ​​प्रयोगशालाओं में उपयोग किये जा रहे है। 

MultiMMR किस प्रकार काम करता है:-

MultiMMR एक साथ प्रमोटर मेथिलिकेशन, म्यूटेशन, कॉपी नंबर स्टेटस, हेटेरोज़ीगोसिटी की न्यूट्रल लॉस कॉपी और डीएनए की थोड़ी मात्रा से माइक्रोसैटेलाइट अस्थिरता के लिए परीक्षण करता है। एमएमआर की कमी की उपस्थिति का पता लगाने के लिए, मल्टीएमएमआर प्रमोटर मेथिलिकरण और माइक्रोसैटेलाइट अस्थिरता विश्लेषण में क्रमशः नैदानिक ​​परीक्षण के साथ 95 प्रतिशत और 97 प्रतिशत समरूपता पाई गई है । MMR की कमी के लिए जिम्मेदार वेरिएंट का पता लगाने में, MultiMMR ने 24 में से 23 मामलों में नैदानिक ​​परीक्षण के परिणामों का सही मिलान किया है। 

परीक्षण ने सिंथेटिक मिश्रण में सभी 11 उत्परिवर्तन को कई अनुक्रमण रन में पहचाना। साथ ही अपूर्ण या अनिर्णायक परीक्षण में 29 रोगियों में बेमेल मरम्मत की कमी की पहचान की है। इस नवीन जाँच के द्धारा MMR के कारणों की भी सही पहचान की गयी जो की वर्तमान में उपस्थित क्लीनिकल तरीको से संभव नहीं है। 

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इस प्रकार MMR की उपस्थित और कमी का पता एक सिंगल जाँच के द्धारा किया जा सकता है। इस विधि के द्धारा वंशानुगत कैंसर और लिंच से सम्बंधित रिपोर्ट्स में सुधार हो सकता है। वर्तमान में उपस्थित कैस्केड जाँच  प्रोटोकॉल, कोलोरेक्टल और एंडोमेट्रियल कैंसर के रोगियों  में जाँच की मांग को पूरा नहीं कर सकते है। कई अगली पीढ़ी के अनुक्रमण परीक्षण पद्धति दैहिक उत्परिवर्तन के साथ-साथ माइक्रोसैटेलाइट अस्थिरता और प्रमोटर मेथिलिकरण के मामले में कार्य नहीं करते है। 

पुरानी IMMUNOTHERAPY के लिए समय पर और ठोस परिक्षण किया जाना आवश्यक है। इसलिए MMR की सही स्तिथि का पता होना भी अत्यंत आवश्यक है।MultiMMR पूरी प्रक्रिया को सरल बनाता है और MMR कमी की सही स्तिथि को भी बताता है। सही समय पर सही स्तिथि का पता होने से समय की बचत होती है। इस प्रकार MMR के द्धारा चिकित्सको को रोगियों के प्रबंधन और उपचार के उचित फैसले को समय से लेने में मदद करता है। 

लेख से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी:-

MISMATCHED REPAIR DEFICIENCY SYNDROME:-

मिसमैच रिपेयर डेफिशियेंसी  सिंड्रोम (एमएमआरडीएस) एक कैंसर सिंड्रोम है जो बायलॉजिकल डीएनए मिसमैच रिपेयर म्यूटेशन से जुड़ा है। इसे टरकोट सिंड्रोम के रूप में भी जाना जाता है। MMRDS आम तौर पर आंत और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) दोनों में होता है। बड़ी आंत में, कई कोलोनिक पॉलीप्स विकसित होते हैं तथा सीएनएस में ब्रेन ट्यूमर होता है। 

लिंच सिंड्रोम या वंशानुगत नॉनपोलिपोसिस कोलोरेक्टल कैंसर के रूप में जानी जाने वाली स्थिति में इन जीनों के मोनोएलेटिक म्यूटेशन देखे जाते हैं, जबकि सीएमएमआर-डी में बायेलिक म्यूटेशन देखे जाते हैं। 

DNA-DEOXYRIBO NUCLEIC ACID:-

DNA SEQUENCING

DNA एक जटिल आणविक संरचना है जो सभी प्रोकैरियोटिक और यूकेरियोटिक कोशिकाओं और कई वायरस में पाया जाता है। वंशानुगत जानकरी को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाने के लिये भी डीएनए ही ज़िम्मेदार है। रासायनिक डीएनए पहली बार 1869 में खोजा गया था, लेकिन आनुवांशिक वंशानुक्रम में इसकी भूमिका 1943 तक प्रदर्शित नहीं की जा सकी थी।

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1953 में जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक ने बायोफिजिसिस्ट रोजालिंड फ्रैंकलिन और मौर्य विल्किंस के काम के आधार पर यह निर्धारित किया कि डीएनए एक दोहरी संरचना है। इस सफलता के कारण वैज्ञानिकों की डीएनए प्रतिकृति और सेलुलर गतिविधियों के वंशानुगत नियंत्रण की समझ में महत्वपूर्ण प्रगति हुई।

डीएनए अणु का विन्यास अत्यधिक स्थिर है, यह नए डीएनए अणुओं की प्रतिकृति के लिए एक टेम्पलेट के रूप में कार्य करने की अनुमति देता है, साथ ही संबंधित आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) अणु के उत्पादन (प्रतिलेखन) के लिए भी काम करता है। डीएनए का एक खंड जो कोशिका के विशिष्ट प्रोटीन के संश्लेषण के लिए कोड होता है, उसे जीन कहा जाता है।

DNA SEQUENCING PROTOCOL:- 

DNA SEQUENCING, डीएनए के न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) को निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक है। क्लियोटाइड अनुक्रम, जीन या जीनोम के ज्ञान का सबसे मुख्य स्तर है। यह एक ऐसा मानचित्र है जिसमें  जीव के निर्माण के निर्देश हैं।  इसी के द्धारा आनुवांशिक कार्य या विकास की  जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इस तकनीक में काम में आने वाले विभिन्न उपकरणों को DNA SEQUENCING PROTOCOL कहा जाता है। 

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Reference: “An Integrative DNA Sequencing and Methylation Panel to Assess Mismatch Repair Deficiency” by Leslie E. Oldfield, Tiantian Li, Alicia Tone, Melyssa Aronson, Melissa Edwards, Spring Holter, Rene Quevedo, Emily Van de Laar, Jordan Lerner-Ellis, Aaron Pollett, Blaise Clarke, Uri Tabori, Steven Gallinger, Sarah E. Ferguson and Trevor J. Pugh, 28 November 2021, The Journal of Molecular Diagnostics.
DOI: 10.1016/j.jmoldx.2020.11.006

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