Lok Adalat Kya Hai | In Hindi |

हेलो दोस्तों सिविल सर्विसेज हब पर आपका स्वागत है। हमारे देश में पीड़ितों को नये दिलाने और सत्ता में बैठी सरकार को मनमानी करने से रोकने के लिये न्यायपालिका की स्थापना की गयी है। लेकिन इन न्यायलयों में केस काफी समय तक लंबित रहता है जिसके कारण न्याय पाने में काफी समय लग जाता है। इसलिए त्वरित न्याय देने की दिशा में लोक अदालतों की स्थापना की गयी है। आज के हमारे Lok Adalat Kya Hai लेख में हम इन्ही लोक अदालतों के बारे में चर्चा करेंगे और समझेंगे कि इनकी क्या उपयोगिता है और इनमे किस प्रकार के सुधार की आवश्यकता है। 

Lok Adalat Kya Hai:-

Lok Adalat Kya Hai

Lok Adalat एक ऐसी अदालत/मंच है जहाँ पर न्यायालयों में विवादों/लंबित मामलो या मुकदमेबाजी से पहले की स्थिति से जुड़े मामलो का समाधान समझौते से और सौहार्दपूर्ण तरीके से किया जाता है। इसमें विवादों के दोनों पक्ष के मध्य उत्त्पन हुए विवाद को बातचीत या मध्यस्ता के माध्यम से उनके आपसी समझौते के आधार पर निपटाया जाता है। लोक अदालत विवादों को निपटाने का वैकल्पिक साधन है। लोक अदालत बेंच सभी स्तरों जैसे सर्वोच्च न्यायालय स्तर, उच्च न्यायालय स्तर, जिला न्यायालय स्तर पर दो पक्षों के मध्य विवाद को आपसी सहमति से निपटानें के लिए गठित की जाती है।

लोक अदालत को विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 के तहत लोक अदालत को वैधानिक दर्जा दिया गया है। जिसके तहत लोक अदालत के अवार्ड (निर्णय) को सिविल न्यायालय का निर्णय माना जाता है, जो कि दोनों पक्षकारों पर बाध्यकारी होता है। लोक अदालत के अवार्ड (निर्णय) के विरुद्ध किसी भी न्यायलय में अपील नहीं की जा सकती है।

लोक अदालत के दायरे:-

न्यायालय में लंबित मुकदमां का समझौता-केवल ऐसे आपराधिक मुकदमों को छोड़कर जिनमें समझौता कानूनन संभव नही है, सभी प्रकार के सिविल एवं आपराधिक मुकदमें भी इन लोक अदालतों में आपसी समझौते के द्वारा निपटाये जातें हैं। न्यायालय में मुकदमा जाने से पहले समझौता, ऐसे विवाद जिन्हें न्यायालय के समक्ष दायर नही किया गया है उनका भी प्री लिटिगेशन स्तर पर यानि मुकदमा दायर किये बिना ही दोनो पक्षों की सहमति से लोक अदालतों में निस्तारण किया जा सकता है।

लोक अदालत की विशेषताएँ:-

इसमें कोई कोर्ट फीस नही होती। यदि न्यायालय में लंबित मुकदमें में कोर्टं फीस जमा भी करवाई गई हो तो लोक अदालत में विवाद का निपटारा हो जाने पर वह फीस वापिस कर दी जाती है। इसमें दोनों पक्षकार जज के साथ स्वयं अथवा अधिवक्ता के द्वारा बात कर सकतें हैं जो कि नियमित कोर्ट में संभव नही होता।

लोक अदालत का मुख्य गुण है अनौपचारिकता व त्वरित न्याय। लोक अदालत के द्वारा पास अवार्ड दोनो पक्षों के लिए बाध्यकारी होता है। इसे डिक्री कहा जाता है और इसके विरूद्ध अपील नही होती।

स्थायी लोक अदालत:-

स्थायी लोक अदालत का गठन विधिक सेवाएं प्राधिकरण अधि नियम 1987 की धारा 22-बी की उप धारा (1) के अंतर्गत हुआ है। जनहित सेवाओं से संबंधित विभाग जैसे बिजली, पानी, अस्पताल आदि से संबंधित मामलों को, मुकदमें दायर करने से पहले आपसी सुलह से निपटाने के लिए राज्य प्राधिकरण द्वारा स्थायी लोक अदालतों की स्थापना की गई है। कोई भी पक्ष जिसका संबंध इन जनहित सेवाओं से है वह इन विवादों को निपटाने के लिए स्थायी लोक अदालत में आवेदन कर सकता है। 

ई-लोक अदालत:-

ऑनलाइन लोक अदालत या ई-लोक अदालत न्‍यायिक सेवा संस्‍थानों का एक नवाचार है, जिसमें अधिकतम लाभ के लिए टैक्‍नोलॉजी का उपयोग किया गया है। यह लोक अदालत का ही एक वर्चुअल प्रारूप है जो लोगों को घर बैठे ही न्‍याय प्राप्त करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। ई-लोक अदालतों के संचालन में खर्च कम होते है, क्‍योंकि इसमें परम्परागत रूप से केस से संबंधी खर्चों की जरूरत समाप्‍त हो जाती है।

वैकल्पिक विवाद समाधान:-

वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) विवादों को सुलझाने के सन्दर्भ में उन विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं को संदर्भित करता है जो संबधित पार्टियों को बिना ट्रायल या बगैर मुकदमेबाजी के विवादों को हल करने में मदद करता है। वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) के प्रचलित स्वरूपों में मध्यस्थता, पंचाट, तटस्थ मूल्यांकन, लोक अदालत इत्यादि शामिल हैं।

लोक अदालत के कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियाँ:-

  • भारत की एक बड़ी आबादी अशिक्षित है जो न तो कानूनी प्रक्रिया व उसकी प्रणालियों से परिचित है और न ही संवैधानिक अधिकारों के प्रति सजग है।
  • भारत में एक बड़ी आबादी ऐसी है जो कानूनी मदद इसलिए नहीं प्राप्त होती क्योंकि वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं।
  • यह एक आम धारणा है कि निःशुल्क विधिक सेवा की गुणवत्ता अपेक्षाकृत अच्छी नहीं है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि सरकारी वकील बड़े नामचीन वकीलों के समक्ष अपने प्रकरण को ठीक ढंग से पेश नहीं कर करते हैं जिससे फरियादी का कानून के प्रति अविश्वास बढ़ने लगता है।
  • विधिक सेवा देने के लिए वकीलों की कमी भी एक मुख्य चुनौती है।
  • भारत में डिजिटल डिवाइड अधिक होने और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर कमजोर होने से ई-लोक अदालत का उच्चतम लाभ नहीं मिल पा रहा है।

Reference:- NCERT

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