भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ की अधिकतर जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि और पशुपालन पर निर्भर करती है। भारत में पशुपालन का एक लंबा इतिहास रहा है, और यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पशुधन न केवल किसानों के लिए आय का स्रोत होता है बल्कि विभिन्न प्रकार की खाद्य उत्पादों, डेयरी उत्पादों, कपड़ा उद्योग, खाद और जैविक ऊर्जा का भी आधार बनता है। ऐसे में, पशुधन की संख्या और उसके विविध प्रकार की जानकारी जुटाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा “पशुधन जनगणना” का आयोजन किया जाता है।
पशुधन जनगणना एक ऐसा सर्वेक्षण है जो देश के विभिन्न हिस्सों में उपस्थित पशुधन की संख्या और उसकी संरचना के बारे में जानकारी देता है। इस जनगणना में सभी प्रकार के पशुओं की गिनती की जाती है, जिससे कृषि और ग्रामीण क्षेत्र की सटीक जानकारी प्राप्त होती है।
पशुधन जनगणना का उद्देश्य:
पशुधन जनगणना का मुख्य उद्देश्य देश में मौजूद पशुधन की सटीक संख्या का पता लगाना और उनकी स्थिति की सही जानकारी प्राप्त करना है। इससे सरकार को पशुधन संबंधित नीतियों और योजनाओं का निर्माण करने में सहायता मिलती है। इसके अन्य प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं:
- कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास: पशुधन जनगणना से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में किया जाता है। इससे यह पता चलता है कि देश में किस प्रकार के पशुओं की अधिकता है और उनकी उत्पादकता कितनी है।
- पशुधन के स्वास्थ्य की देखभाल: जनगणना से यह पता चलता है कि कौन से क्षेत्रों में पशुधन की अधिक संख्या है और कहाँ पर अधिक चिकित्सा सेवाओं की आवश्यकता है। इससे सरकार पशुओं की स्वास्थ्य सुविधाओं को और अधिक विकसित करने के लिए उचित कदम उठा सकती है।
- डेयरी और अन्य उद्योगों का विकास: पशुधन जनगणना से डेयरी उद्योग, ऊन उद्योग और अन्य पशु आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने में मदद मिलती है। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक स्थिरता आती है।
- पशुधन आधारित योजनाओं का निर्माण: पशुधन जनगणना से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग कर सरकार पशुधन पालन से संबंधित नई योजनाएँ और सब्सिडी योजनाएँ बना सकती है।
पशुधन जनगणना का इतिहास:
भारत में पहली पशुधन जनगणना का आयोजन वर्ष 1919-1920 में हुआ था। इसके बाद हर पांच साल में पशुधन जनगणना की जाती है। इस प्रकार 2019 में 20वीं पशुधन जनगणना का आयोजन किया गया था। यह जनगणना राष्ट्रीय स्तर पर होती है और इसमें हर राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश के पशुधन की जानकारी दर्ज की जाती है।
पशुधन जनगणना कैसे की जाती है?
पशुधन जनगणना का कार्य बहुत व्यापक और कठिन होता है। इसके लिए प्रशिक्षित सर्वेक्षक गांव-गांव जाकर हर घर के पशुओं की गिनती करते हैं और उनकी जानकारी दर्ज करते हैं। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित मुख्य कदम शामिल होते हैं:
- प्रशिक्षण और योजना: सर्वेक्षकों को पहले पशुओं की पहचान, उनकी नस्ल, उम्र और स्थिति के बारे में जानकारी दी जाती है। उन्हें यह भी सिखाया जाता है कि डेटा कैसे एकत्र करना है और कैसे उसे रिकॉर्ड करना है।
- घर-घर जाकर सर्वेक्षण: सर्वेक्षक घर-घर जाकर हर पशु की जानकारी जुटाते हैं। इसमें गाय, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़े, ऊँट और अन्य सभी प्रकार के पालतू जानवर शामिल होते हैं।
- डेटा संकलन और विश्लेषण: एकत्रित आंकड़ों को सरकार द्वारा विश्लेषण किया जाता है। इससे यह पता चलता है कि विभिन्न क्षेत्रों में पशुधन की स्थिति क्या है और उसकी विविधता कैसी है।
- रिपोर्ट का प्रकाशन: आंकड़ों के संकलन और विश्लेषण के बाद सरकार द्वारा एक रिपोर्ट तैयार की जाती है जिसमें पशुधन की कुल संख्या, नस्लों की जानकारी, उनकी स्थिति और उत्पादन क्षमता जैसी महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी जाती हैं।
पशुधन जनगणना के लाभ:
पशुधन जनगणना से देश को विभिन्न स्तरों पर लाभ होता है। इसके कुछ मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:
- सटीक नीति निर्माण में सहायक: पशुधन जनगणना से प्राप्त आंकड़े सरकार को पशुपालन और डेयरी उद्योग से संबंधित योजनाओं को बनाने और सुधारने में सहायता करते हैं। इससे देश की कृषि नीति में सुधार होता है और पशुपालन से जुड़े उद्योगों को समर्थन मिलता है।
- आर्थिक विकास में योगदान: पशुधन जनगणना ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार और आजीविका के नए अवसरों का निर्माण करने में सहायक होती है।
- पशुओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल: जनगणना से यह पता चलता है कि किन क्षेत्रों में पशुओं की संख्या अधिक है और कहाँ पशु स्वास्थ्य सेवाओं की अधिक आवश्यकता है। इससे पशु स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- पशुधन उत्पादन में वृद्धि: पशुधन की सही जानकारी से उनकी उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार होता है। उदाहरण के लिए, डेयरी उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार डेयरी फार्मिंग को प्रोत्साहित करती है, जिससे दूध उत्पादन में वृद्धि होती है।
निष्कर्ष:
पशुधन जनगणना भारत में ग्रामीण विकास, कृषि और पशुपालन में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह न केवल पशुधन की संख्या की जानकारी देती है, बल्कि उनके स्वास्थ्य, नस्ल, उत्पादकता और उनके योगदान के बारे में भी जानकारी देती है। इससे सरकार को नीतियों और योजनाओं को बनाने में सहायता मिलती है जो देश की कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है।
इस प्रकार, पशुधन जनगणना हमारे देश के समग्र विकास के लिए एक अनिवार्य साधन है जो समय-समय पर हमें पशुधन से संबंधित अद्यतित जानकारी प्रदान करता है।
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