2024 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का 29वां संस्करण (COP29) आरंभ हो चुका है। इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने और इसके समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने पर जोर दिया जा रहा है। इसमें कार्बन मार्केट्स, नई जलवायु वित्त लक्ष्य (New Collective Quantified Goal – NCQG), पेरिस समझौता, कार्बन बजट, जलवायु वित्त और जलवायु अनुकूलन जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की जा रही है।
जलवायु परिवर्तन वर्तमान में न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता के लिए भी एक गंभीर चुनौती बन चुका है। इन विषयों को समझना यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में हम इन सभी प्रमुख अवधारणाओं का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
1. कार्बन मार्केट्स (Carbon Markets)
परिभाषा: कार्बन मार्केट्स एक प्रणाली है जो देशों और कंपनियों को कार्बन क्रेडिट के माध्यम से अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को संतुलित करने का अवसर प्रदान करती है। इसका उद्देश्य है कि उत्सर्जन को कम करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाए और प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए।
मुख्य तत्व:
- कार्बन क्रेडिट (Carbon Credits): एक कार्बन क्रेडिट एक टन कार्बन डाइऑक्साइड या इसके बराबर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने का प्रमाणपत्र है। इस प्रणाली के अंतर्गत, कंपनियाँ और देश अपने निर्धारित उत्सर्जन स्तर को संतुलित करने के लिए कार्बन क्रेडिट खरीद सकते हैं।
- कार्बन ऑफसेटिंग (Carbon Offsetting): यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कंपनियाँ अपने द्वारा किए गए उत्सर्जन को किसी अन्य परियोजना में निवेश करके संतुलित करती हैं, जैसे कि वृक्षारोपण परियोजनाएँ या नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ।
प्रकार:
- अनुपालन बाजार (Compliance Markets): यह कानूनी रूप से स्थापित बाजार है जहाँ सरकारें अपने निर्धारित कार्बन उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कार्बन क्रेडिट का लेन-देन करती हैं।
- स्वैच्छिक बाजार (Voluntary Markets): इसमें कंपनियाँ या व्यक्ति स्वेच्छा से अपने उत्सर्जन को संतुलित करने के लिए कार्बन क्रेडिट का लेन-देन करते हैं।
महत्व: कार्बन मार्केट्स जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक प्रभावी उपकरण माने जाते हैं। यह प्रणाली न केवल कंपनियों को अपने उत्सर्जन में कमी लाने के लिए प्रेरित करती है, बल्कि हरित प्रौद्योगिकी में निवेश को भी प्रोत्साहित करती है।
2. नई जलवायु वित्त लक्ष्य (New Collective Quantified Goal – NCQG)
परिचय: एनसीक्यूजी का उद्देश्य विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आर्थिक मदद देना है। यह पेरिस समझौते के तहत 2025 के बाद के वित्तीय लक्ष्यों को निर्धारित करने के लिए एक सामूहिक लक्ष्य है। वर्तमान में, 2020 तक प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर का लक्ष्य था, जिसे अब और बढ़ाकर भविष्य में लागू करने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
- वित्तीय जिम्मेदारी: विकसित देशों की यह जिम्मेदारी है कि वे विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करें।
- संवहनीय वित्तपोषण: इसका उद्देश्य एक दीर्घकालिक और स्थिर वित्तीय व्यवस्था बनाना है, जिससे विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद मिल सके।
- वित्तीय गारंटी: यह लक्ष्य विकासशील देशों को जलवायु अनुकूलन और उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयासों में सहयोग देगा, जिससे वे आर्थिक दबाव के बिना पर्यावरणीय कदम उठा सकें।
3. पेरिस समझौता (Paris Agreement)
परिचय: पेरिस समझौता 2015 में संयुक्त राष्ट्र के COP21 में जलवायु परिवर्तन पर किया गया एक ऐतिहासिक समझौता है। इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग को 2°C के भीतर सीमित करना और आदर्श रूप से इसे 1.5°C तक बनाए रखना है।
मुख्य उद्देश्य:
- वैश्विक तापमान को नियंत्रित करना: यह समझौता ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के लिए सभी देशों को प्रेरित करता है ताकि तापमान 2°C तक सीमित रहे और इससे ऊपर न बढ़े।
- ग्रीनहाउस गैसों में कमी लाना: सभी देशों को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए अपना योगदान देना होगा।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: यह समझौता देशों को पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए प्रेरित करता है ताकि वे अपनी प्रगति रिपोर्ट साझा करें।
प्रमुख तंत्र:
- राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs): प्रत्येक देश को यह तय करना होता है कि वे कितनी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन में कटौती करेंगे। हर पांच वर्ष में यह लक्ष्य पुनः निर्धारित किए जाते हैं।
- जलवायु वित्त: पेरिस समझौता विकसित देशों से विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान करता है ताकि वे अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।
4. कार्बन बजट (Carbon Budget)
परिभाषा: कार्बन बजट का अर्थ है कि हमें कितनी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करने की अनुमति है ताकि हम ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित रख सकें। यह जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित एक सीमा होती है जो यह तय करती है कि अधिकतम कितना कार्बन वातावरण में छोड़ा जा सकता है।
महत्व: कार्बन बजट विभिन्न सरकारों और संगठनों को एक ठोस लक्ष्य प्रदान करता है और उन्हें कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए नीतियों को अपनाने में मदद करता है। यह भविष्य के लिए जलवायु योजना बनाने में सहायक होता है।
5. जलवायु वित्त (Climate Finance)
परिचय: जलवायु वित्त विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और अपने उत्सर्जन को कम करने में आर्थिक सहायता प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि विकासशील देश हरित ऊर्जा प्रौद्योगिकी को अपनाएं और जलवायु परिवर्तन के जोखिमों का सामना कर सकें।
प्रमुख घटक:
- वित्तीय सहायता: जलवायु वित्त का मुख्य उद्देश्य विकसित देशों से विकासशील देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है ताकि वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपट सकें।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: इसमें विकसित देशों से विकासशील देशों को हरित प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करना शामिल है।
उदाहरण: कई देशों ने सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए जलवायु वित्त का उपयोग किया है ताकि उनका कार्बन फुटप्रिंट कम हो सके।
6. कार्बन तटस्थता (Carbon Neutrality)
परिभाषा: कार्बन तटस्थता का अर्थ है कि जितनी मात्रा में कार्बन उत्सर्जित किया गया है, उतनी ही मात्रा में कार्बन अवशोषित भी किया गया है। इसे “नेट-जीरो” उत्सर्जन भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों के संतुलन को बनाए रखना है।
कार्यान्वयन:
- उत्सर्जन में कमी लाना: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना और कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों को अपनाना।
- कार्बन ऑफसेटिंग: कार्बन क्रेडिट खरीदना और वनीकरण परियोजनाओं में निवेश करना।
महत्व: कार्बन तटस्थता जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम है और इसे ग्रह के संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक माना जाता है।
7. नेट-जीरो उत्सर्जन (Net-Zero Emissions)
परिभाषा: नेट-जीरो उत्सर्जन का अर्थ है कि जितनी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ है, उतनी ही मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों को वातावरण से अवशोषित किया गया है।
उदाहरण: भारत ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य रखा है, जिससे वह अपनी ऊर्जा प्रणाली को धीरे-धीरे हरित बनाने की ओर अग्रसर है।
महत्व: नेट-जीरो उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसे 2050 तक प्राप्त करना जलवायु नीति का एक प्रमुख लक्ष्य बन गया है।
8. जलवायु अनुकूलन (Climate Adaptation)
परिभाषा: जलवायु अनुकूलन का तात्पर्य है जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना और अनुकूलित तकनीकों का उपयोग करके प्राकृतिक आपदाओं के जोखिमों को कम करना।
उदाहरण: तटीय क्षेत्रों में समुद्र की बढ़ती सतह के खिलाफ दीवारें बनाना, कृषि में जलवायु-स्मार्ट तकनीकों का प्रयोग करना, और शहरी क्षेत्रों में ग्रीन स्पेस का निर्माण करना।
महत्व: जलवायु अनुकूलन के माध्यम से समाज को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के खिलाफ तैयार किया जा सकता है और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
निष्कर्ष
कॉप 29 जैसे सम्मेलन जलवायु परिवर्तन से जुड़े वैश्विक समझौतों और लक्ष्यों को स्थापित करने का अवसर प्रदान करते हैं। कार्बन मार्केट्स, एनसीक्यूजी, पेरिस समझौता, कार्बन बजट, जलवायु वित्त, और अन्य महत्वपूर्ण शब्दावली को समझना न केवल यूपीएससी की परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ इस लड़ाई में एक प्रभावी भूमिका निभा सकें।
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