CRISPR Editing in a Living Organism | In Hindi |

हेलो दोस्तों, सिविल सर्विसेज हब पर आपका स्वागत है। दोस्तों आपने जीन संपादन की क्रिया के बारे में तो सुना ही होगा। हाल ही के एक अध्ययन से यह पता चला है जीन को पूरे शरीर की कोशिकाओं में सटीक रूप से संपादित किया जा सकता है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय सैन डिएगो के शोधकर्ताओं ने CRISPR– आधारित तकनीकों का उपयोग करते हुए एक संभावित नई जीन थेरैपी की खोज की है। CRISPR Editing in a Living Organism लेख इसी खोज पर आधारित है। पूरी जानकारी के लिए पोस्ट को अंत तक पढ़े। 

CRISPR Editing in a Living Organism:-

CRISPR Editing in a Living Organism

यूसी सैन डिएगो पोस्टडॉक्टोरल स्कॉलर झिकियान ली के नेतृत्व में बायोलॉजिकल साइंसेज के प्रोफेसर एथन बिएर के द्वारा किये गए शोध यह दर्शाते है डीएनए मरम्मत तंत्र को दुर्बल करने वाली बीमारियों और क्षतिग्रस्त सेल को पुनः ठीख किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने “अनुलिपित्र” नामक एक आदर्श आनुवांशिक सेंसर विकसित किया है। यह सेंसर CRISPR- आधारित जीन ड्राइव तकनीक का ही विकसित रूप है। 

शोध को साबित करने के लिए वैज्ञानिको ने फल मक्खी के शरीर में अनुवांशिक तत्व को दूसरी कोशिका में ठीख से कॉपी किया। 

शोध की विस्तृत जानकारी:-

जीन ड्राइव तकनीक के द्धारा शरीर की प्रजनन कोशिकाओं (शुक्राणु और अंडे) में वांछित लक्षणों को कॉपी और वितरित करने के लिए विकसित किया जा सकता है। इस प्रकार यह लक्षण पूरी आबादी में फैल सकते है। इस प्रक्रिया के द्धारा जहाँ एक और मलेरिया जैसे कीट-व्याधिजनित रोगों के संचरण को रोका जा सकता है वही दूसरी और कृषि फसलों को भी मजबूत किया जा सकता है। 

नए ज़माने के कॉपी कैचर सिस्टम यह मापेंगे की मानव शरीर की किन कोशिकाओं में यह कॉपी एकदम सटीक रूप में हो सकती है। फल मक्खी में इस सिस्टम के द्धारा कॉपी की क्षमता को मापने की दर बहुत ज्यादा है। शोधकर्ताओं के अनुसार अगर यही दर मनुष्य में भी पायी गयी तो मानव शरीर में भी जरूरी स्थान पर जीनोम एडिट किया जा सकेगा। 

उन कोशिकाओं में जीन एडिट करना फायदेमंद होगा जिनकी मदद से मानव शरीर स्वस्थ रहता है। नेचर कम्युनिकेशंस स्टडी एंड साइंस के वरिष्ठ लेखक बीर ने कहा है कि ये अध्ययन एक नए प्रकार की जीन थेरेपी के लिए एक स्पष्ट प्रमाण प्रदान करते हैं। जिसके द्धारा एक उत्परिवर्तित जीन की दूसरे स्वस्थ कॉपी की मदद से ठीख किया जा सकता है। 

इस तरह की डिज़ाइन की आवश्यकता ऐसे अनुवांशिक मरीजों के लिये होती है जिनके माता-पिता  एक ही जीन में दो अलग-अलग उत्परिवर्तन के वाहक हो। शोधकर्ता बीर कहते हैं कि उत्परिवर्तित जीन के सन्दर्भ में पुराने जीन थेरेपी और इस जीन थेरेपी में बहुत फर्क है। पुरानी थेरेपी में एक सरोगेट प्रतिलिपि जीनोम में एक अलग साइट पर रखी जाती है जो एक क्रूड “पैच” के रूप में कार्य करती है।

नई जीन थेरेपी तकनीक के फायदे:-

सामान्य जीन प्रतिस्थापन के केस में जीन अक्सर उन कोशिकाओं में सक्रिय होते है जहाँ उन्हें शांत रहना चाहिए। फल मक्खी में, CopyCatchers के द्धारा किये गए सटीक जीन संपादन को अगर मनुष्य में कर लिया जाता है तो विभिन्न प्रकार के आनुवंशिक विकारों का इलाज किया जा सकता है। इस रोगो में रक्त रोग, दृष्टि या सुनवाई को प्रभावित करने वाले रोग और विशिष्ट अंगों जैसे पेशीयो के विकास को अवरुद्ध करने वाले रोग आदि शामिल है। 

CRISPR Editing in a Living Organism

जीन थेरेपी का यह पुनर्स्थापनात्मक रूप मौजूदा तरीकों पर एक प्रमुख सुधार का प्रतिनिधित्व करेगा। इस परिवर्तन से जिसमें जीन की एक कार्यात्मक प्रतिलिपि आम तौर पर शरीर के सभी कोशिकाओं में सक्रिय हो जाएगी। लेकिन कोशिकाओं में यह प्रतिलिपि असामान्य पैटर्न में होती है। 

शोध को किये जाने पर शोधकर्ताओं ने  मक्खी के शरीर (आंखों, एपिडर्मिस और भ्रूण कोशिकाओं) के विभिन्न ऊतकों में सक्रिय तीन जीनों में आनुवंशिक जानकारी की अत्यधिक कुशल नकल का को पाया। लेकिन मानव में कोशिकाओं में एक गुणसूत्र से दूसरे में जानकारी की प्रतिलिपि बनाने की क्षमता कम थी। एक और फल मक्खी में यह प्रतिशत 30 – 50 के बीच था तो दूसरी और मानव में यह प्रतिशत 4 – 8 प्रतिशत ही था। 

हलाकि मानव में कोशिका में विशिष्ठ स्थान पर जीन प्रतिस्थापित करने के लिये CRISPR का उपयोग किया जा रहा है। शोधकर्ताओं ने बताया कि नुकसान को ठीक करने के लिए अन्य गुणसूत्र का उपयोग किया जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप आनुवंशिक तत्व को कट साइट में ठीक से कॉपी किया जा सकता है। 

CopyCatchers के काम करने का तरीका:-

CopyCatchers को इस तथ्य के आधार पर डिज़ाइन किया गया है कि कोशिकाओं में प्रत्येक गुणसूत्र की दो प्रतियां हैं। इसके शुरुआती स्थान पर, एक CopyCatcher को निष्क्रिय किया जाता है जहाँ इसे एक लाल फ्लोरोसेंट डिटेक्टर प्रोटीन का उत्पादन करने से रोका जाता है। अगर CopyCatcher खुद को अन्य गुणसूत्रों पर अच्छे तरीके से कॉपी करता है तब यह उन पर लगाये गए अवरोध से मुक्त हो जाता है और कोशिका फ्लोरोसेंट हो सकती हैं।

लाल फ्लोरोसेंट कोशिकाओं का अंश सटीक CRISPR संपादन की आवृत्ति का एक मात्रात्मक संकेतक है। यह आश्चर्यजनक था कि CopyCatchers मानव कोशिकाओं में ऐसा करने की अप्रत्याशित क्षमता रखता है। 

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Reference: “CopyCatchers are versatile active genetic elements that detect and quantify inter-homolog somatic gene conversion” by Zhiqian Li, Nimi Marcel, Sushil Devkota, Ankush Auradkar, Stephen M. Hedrick, Valentino M. Gantz and Ethan Bier, 11 May 2021, Nature Communications.
DOI: 10.1038/s41467-021-22927-1

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