Fecal Microbiota Transplantation | IN HINDI |

हेलो दोस्तों, सिविल सर्विसेस हब पर आपका स्वागत है। जब भी हम बीमार हो जाते गई तो संक्रमण से बचने के लिये चिकित्सक हमें एंटीबायोटिक दवाइयाँ लिखकर देता है। यह एंटीबायोटिक दवाइयाँ निश्चय ही बीमारी को ख़त्म करने में सहायक है। लेकिन  क्या आप जानते है कि इनके अत्यधिक सेवन से भी कई बीमारियाँ हो जाती है। आज हम अपने लेख Fecal Microbiota Transplantation में ऐसी ही एक बीमारी के बारे चर्चा करेंगे। साथ ही जानेंगे की इसका उपचार क्या है। तो सम्पूर्ण जानकारी के लिये पोस्ट को पूरा पढ़े। 

Fecal Microbiota Transplantation

Fecal Microbiota Transplantation:-

ओसाका सिटी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिको ने मानव आंत में परिस्तिथितकी को बहाल करने के लिये बैक्टीरियोफेज (फेज) और उनके मेजबान बैक्टीरिया के आपसी समन्वय से फेकल माइक्रोबायोटा प्रत्यारोपण  की सफलता की आशंका व्यक्त की है। 

आंत में क्लोस्ट्रीडिओइड्स डिफिसाइल इन्फेक्शन (आरसीडीआई) नाम का रोग होता है। यह रोग ग्राम-पॉजिटिव, बीजाणु-रोधी अवायवीय जीवाणु, आरसीडीआई (rCDI) के कारण होता है। इस बैक्टीरियम के मानव अपशिष्ट से जुड़ जाते है और अपशिष्ट के द्धारा बहार त्याग दिये जाते है। 

ऐसा होने पर स्वास्थ्य कर्मियों के हाथो में हस्तान्तरित हो जाता है और फिर उनके मुँह के द्धारा पेट में चले जाते है। इस बीमारी के लिये एंटीबायोटिक उपचार से गुजरने वाले रोगी विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। जैसा की हम जानते है कि सूक्ष्मजीवियो के द्धारा हमारी आंत की पारिस्तिथिकी को बनाये रखा जाता है। एंटीबायोटिक के उपयोग से इन सूक्ष्मजीवियो को बहुत नुकसान होता है। 

उपचार का तरीका:-

आरसीडीआई (rCDI) के उपचार में एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग बंद किया जाता है और एंटीबायोटिक थेरेपी को शुरू किया जाता है। यह बात और है कि ऐसा करना बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकता है। फेकल माइक्रोबायोटा प्रत्यारोपण (FMT) को एक प्रभावी वैकल्पिक चिकित्सा माना जाता है। इस प्रत्यारोपण में रोगी के क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी को एक स्वस्थ स्टूल प्रत्यारोपण के माध्यम से उपचारित किया जाता है। 

वर्ष 2019 में एफएमटी प्रयोग करने के बाद एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीवाणु संक्रमण के कारण दो मौतें हुईं। इसलिये एफएमटी और उसके विकल्पों में तुरंत संशोधन करने की आवश्यकता है। 

नये विकल्प की खोज:-

ओसाका सिटी विश्वविद्यालय और इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंस, टोक्यो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस समस्या का निदान ढूंढ लिया है। उनका यह लेख गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में प्रकाशित भी हुआ है। 

वैज्ञानिको ने अपने 2020 के विश्लेषण को आधार बनाते हुए, एफएमटी दिए हुए उन रोगियों की आंतो के जीवाणु और वायरस के मेटाजिनोम का अध्ययन किया। जिन रोगियों पर यह अध्ययन किया गया वो सब आरसीडीआई  से ग्रस्त थे। 

उन्होंने आरसीडीआई रोग में रोगजनन से सम्बंधित जीवाणु और उन चरणों का पता लगाया। उन्होंने उन चरणों का भी खुलासा किया जिनके द्धारा आंतो की पारिस्तिथिकी को पुनः ठीक किया जा सकता है। उन्होंने बताया की कैसे  जीवाणु और वायरस एक अंग की तरह साथ काम करते है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि आरसीडीआई के रोगियों में एफएमटी उतना ही कारगर है जितना किसी ख़राब अंग तो हटाकर नया लगाना। 

शोधकर्ताओं के अनुसार हमें आंतों के माइक्रोबायोटा को निश्चित रूप से एक ‘अंग’ के रूप में मानना चाहिए। रोगी आंत में एफएमटी जीवाणु और वायरस की पारिस्तिथिकी को बदलकर उसे सुचारु करने में सफल है। 

एक अन्य शोध के अनुसार COVID-19 के बाद आरसीडीआई एक अन्तर्राष्ट्रीय बीमारी बन सकता है। इसमें कोई शक नहीं है कि एफएमटी, आरसीडीआई के लिए एक महत्वपूर्ण चिकित्सीय रणनीति है। 

एफएमटी थेरैपी के अलावा इस बीमारी में सूक्ष्म मेटजेनोमिक आकलन की भी आवश्यकता होती है। 

Fecal Microbiota Transplantation लेख से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी:-

जीवनभोजी (BACTERIOPHAGES):-

हिंदी में इसे जीवनभोजी या जीवाणुभक्षी कहा जाता है। यह वायरस का एक समूह जो बैक्टीरिया को संक्रमित करता है।बैक्टीरियोफेज की खोज फ्रेडरिक डब्ल्यू ट्वॉर्ट ने ग्रेट ब्रिटेन में की थी। फ्रांस में फेलिक्स डी’हेलरेल के द्धारा इसका नामकरण किया गया था। 

BACTERIOPHAGE
Structure of Bacteriophage

बैक्टीरियोफेज एकल-कोशिका वाले प्रोकैरियोटिक जीवों को संक्रमित करने में सक्षम है जिन्हें आर्किया कहा जाता है 

जीवाणुभोजी का जीवन चक्र (LIFE CYCLE OF BACTERIOPHAGE):-

संक्रमण के दौरान एक फेज एक जीवाणु से जुड़ जाता है और अपनी आनुवंशिक सामग्री को सेल में प्रवाहित कर देता है। उसके बाद एक फेज आमतौर पर दो जीवन चक्रों में से एक का अनुसरण करता है –

पहला –

 इसमें भोजी होस्ट कौशिका के अंदर कॉम्पोनेन्ट से जुड़ जाता है तथा अपने न्यूक्लिक एसिड को होस्ट सेल के गुणसूत्र में शामिल कर देता है। सेल को नष्ट किए बिना इस प्रक्रिया को बार-बार दोहराया जाता है। कुछ परिस्तिथियों में फेज तो होस्ट सेल को नष्ट करने के लिये भी प्रेरित किया जाता है। 

दूसरा – 

इसे स्यूडोलिसोजेनी कहा जाता है। इसमें फेज होस्ट कौशिका से जुड़ता नहीं है बल्कि अप्राकृतिक परिस्तिथियों में होस्ट सेल के ढलने का इंतज़ार करती है। अप्राक्रतिक परिस्तिथियाँ फेज के बने रहने में लाभदायक सिद्ध होती है।  ऐसी स्तिथि तब तक बनी रहती है जब तक होस्ट सेल लाभदायक स्तिथि में न आ जाये। 

क्लोस्ट्रीडिओइड्स डिफिसाइल (Clostridioides difficile):-

यह एक जीवाणु है जो मृत्यु का कारण बनने वाले दस्त का कारण बनता है। यह आमतौर पर एंटीबायोटिक लेने का एक साइड-इफेक्ट है। 

Clostridioides difficile
Clostridioides difficile

यह रोग मुख्यतया 65 वर्ष से अधिक उन लोगो में होता होता है जो किसी चिकित्सकीय परामर्श में होते है और एंटीबायोटिक का बहुतायत में सेवन करते है। 

लंबे समय तक अस्पतालों और नर्सिंग होम में रहने वाले लोग भी आसानी से इस बीमारी की चपेट में आ जाते है। 

कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगो में भी यह रोग आसानी से हो जाता है। 

लक्षण (SYMPTOMS):-

भूख में कमी

पतले दस्त

बुखार आदि 

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SCITECHDAILY

Reference: “Functional Restoration of Bacteriomes and Viromes by Fecal Microbiota Transplantation” by Kosuke Fujimoto, Yasumasa Kimura, Jessica R. Allegretti, Mako Yamamoto, Yao-zhong Zhang, Kotoe Katayama, Georg Tremmel, Yunosuke Kawaguchi, Masaki Shimohigoshi, Tetsuya Hayashi, Miho Uematsu, Kiyoshi Yamaguchi, Yoichi Furukawa, Yutaka Akiyama, Rui Yamaguchi, Sheila E. Crowe, Peter B. Ernst, Satoru Miyano, Hiroshi Kiyono, Seiya Imoto and Satoshi Uematsu, 9 February 2021, Gastroenterology.
DOI: 10.1053/j.gastro.2021.02.013

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