सिविल सर्विसेज हब में आपका स्वागत है। इस सेक्शन में हम आपको एक विशेष टॉपिक पर सम्पूर्ण जानकारी के साथ-साथ हाल ही में हुए शोध के बारे में भी बताते है। आज हम महिलाओ में होने वाली माहवारी के बारे में बात करेंगे। जानेंगे की यह क्यों होती है और इस समय में महिलाओ को किसी प्रकार की देखभाल की जरूरत होती है। साथ ही इसके विभिन्न पहलूओ को भी जानने की कोशिश करेंगे। तो सम्पूर्ण जानकारी के लिए Menstruation Meaning in Hindi – Complete Guide on Menstruation पोस्ट को अंत तक पढ़े।
माहवारी से सम्बंधित नये शोध की जानकारी (New Findings Related to Menstruation) –
LadyPlanet नाम के एक इंग्लिश ब्लॉग ने यह जानकारी दी है कि स्त्रियों में होने वाली माहवारी का समबन्ध चाँद से है। उन्होंने यह दावा किया है कि इसका चाँद के दोनों चक्रो के द्धारा माहवारी पर असर होता है। इसके विपरीत Berliner Tagesspiegel नाम के एक समाचार पत्र ने है कहा है कि अगर स्त्रियों की माहवारी पर चन्द्रमा का असर होता तो सभी महिलाओ में यह एक जैसा ही होता। जबकि कई स्त्रियों में माहवारी का चक्र लम्बा होता है तो कई स्त्रियों में छोटा।
विशेषज्ञों की एक टीम ने अंत में यह निष्कर्ष निकाला कि प्राचीन समय में लोग जनन के समय तथा माहवारी के समय का अनुमान चन्द्रमा की स्तिथि के आधार पर ही लगाते थे। आज के समय में कृत्रिम लाइट का अधिक चलन होने के कारण चन्द्रमा की रौशनी का अधिक महत्व नहीं रहा है।
चंद्र के विभिन्न चरणों, गर्भावस्था और जन्म दर के बीच संबंध –
विशेषज्ञों के अनुसार ऐसी कई जानवरो की प्रजातियाँ ज्ञात है जो जनन प्रक्रिया को सफल बनाने के लिये चन्द्रमा के चरणों का उपयोग करते है। क्योकि महिलाओ में मासिक धर्म की समयावधि और चंद्र चक्र की समयावधि समान है इसलिये ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों में कुछ समानता जरूर होगी। यह समयावधि दोनों में 29.5 दिनों की होती है।
प्राचीन समय की उपलब्ध जानकारी से यह पता चला है कि जिन महिलाओ का मासिक धर्म चक्र चन्द्रमा के चंद्र चक्र के समान होता है उनमें गर्भवती होने की संभावना अधिक होती है। दो बड़े अनुदैर्ध्य अध्ययनो से यह पता चला है कि पूर्णिमा के समय जन्म दर अधिक तथा अमावस्या के समय जन्म दर कम होती है।
साथ ही पूर्णिमा के समय दिन में जन्म दर अधिक होती है जबकि अमावस्या के समय रात में जन्म दर अधिक होती है।
चन्द्रमा और पृथ्वी की परिक्रमा चक्र –
वैज्ञानिक रूप से चन्द्रमा तीन अलग-अलग चक्रों को प्रदर्शित करता है। चक्रो के अनुसार ही चन्द्रमा का प्रकाश और गुरुत्वाकर्षण भी बदलता है। इस बदलाव का सीधा असर पृथ्वी पर पड़ता है। एक और पूर्णिमा और अमावस्या के बीच का समय 29.53 दिन का होता है। वही दूसरी और चन्द्रमा किसी निश्चित पथ पर पृथ्वी के चारो और चक्कर लगाने के बजाय भूमध्य रेखा के अनुसार अपना पथ बदलता है।
कभी-कभी यह उत्तर और कभी कभी दक्षिण की तरफ ज्यादा चक्कर लगता है। इस चक्र की लम्बाई 27.32 दिन होती है। तीसरा चक्र कुछ लम्बा 27.55 दिन का होता है। ऐसा इसलिये होता है क्योकि चंद्र एक अण्डाकार पथ पर पृथ्वी के चारो और चक्कर लगाता है।
इन तीनो चक्रो से गुरुत्वाकर्षण और चन्द्रमा की रौशनी पर असर पड़ता है। इसी वजह से ज्वार-भाटे में परिवर्तन होता है। इसके अलावा यह दोनों गृह मिलकर एक ऐसी स्तिथि भी बनाते है इसे ग्रहण कहते है। यह ग्रहण सटीक है और हर 18 वर्ष में एक बार होता है।
चन्द्रमा की रौशनी का प्रभावी असर –
22 महिलाओ पर लम्बे समय तक किये गये सर्वे से भी यही बात पता चली है कि चंद्र चक्र और गुरुत्वाकर्षण का महिलाओ के मासिक धर्म पर असर होता है। हलाकि प्रत्येक महिला पर इस नियम को लगाना ठीक नहीं होगा। औसतन 35 वर्ष की आयु की महिलाओ में मासिक धर्म का चंद्र चक्र से तालमेल 3 महीने के लिए होता है। जबकि 35 वर्ष के अधिक उम्र की महिलाओ में यह समय 1 महीने तक का हो सकता है।
विशेषकर वे महिलाये जो कृतिम रौशनी में ज्यादा रहती है उनपर चंद्र चक्र का कम असर होता है।
मासिक धर्म में चंद्र गुरुत्वाकर्षण की भूमिका –
वैज्ञानिको के अनुसार चंद्र चक्र में अलावा गुरुत्वाकर्षण भी एक कारण है जो मासिक धर्म से सम्बंधित है। चन्द्रमा के तीनो चक्रो के पूर्ण होने के बाद, प्रत्येक 18 वर्ष के बाद गुरुत्वाकर्षण भी मासिक धर्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
वैज्ञानिको के नए शोध तो इस और भी इशारा कर रहे है कि चंद्र चक्र का प्रभाव मासिक धर्म के अलावा व्यक्ति के सोने और उठने से समय को भी प्रभावित करता है। शोध यह भी बताते है कि गुरुत्वाकर्षण और चंद्र चक्र का प्रभाव कॉलेज के छात्रों के सोने के नियम और समय दोनों को प्रभावित करता है।
यह प्रभाव बहुत ही प्रभावशाली होता है और ऐसे शहरो में भी हो सकता है जहा चंद्रमा की रौशनी शायद ही दिखाई देती हो। हलाकि यह शोध अभी प्रारंभिक अवस्था में है। इसकी और शोध की आवश्यकता है।
Menstruation Meaning in Hindi – Complete Guide on Menstruation
मासिक धर्म क्या है (What is Menstruation) –
मासिक धर्म या माहवारी योनि से स्त्रावित रक्त होता है जो एक निश्चित समयावधि पर होता है। इस रक्त स्त्राव में रक्त, अन्य स्त्राव तथा गर्भाशय की श्लेष्मा झिल्ली की लाइनिंग का स्त्राव होता है। इस प्रक्रिया का जैविक सम्बन्ध स्तनधारियों में प्रजनन की क्रिया से है। यह स्त्राव का समय जीवो में प्रजनन के समय को बताता है।
जैसे की जंगली भेड़ में यह स्त्राव वर्ष में एक बार ही होता है जो यह बताता है की जंगली भेद प्रजनन के लिए तैयार है। इस स्त्राव के समय जंगली भेड़ की शारीरिक संरचना में भी बदलाव आता है। इसमें अंडे अंडाशय तक पहुँचते है तथा जनन अंगो में रक्त का स्त्राव बढ़ जाता है। गर्भाशय का भी विकास होता है और उसकी लाइनिंग भी मजबूत हो जाती है।
गर्भाशय और योनि से रक्त का स्त्राव हो सकता है तथा यही वह समय है जब सहवास हो सकता है। इसी समय में गर्भ धारण जा सकता है। यदि किसी कारण यह समय निकल जाता है तो पुनः अलगे वर्ष के लिये इंतज़ार करना पड़ता है।
इस चक्र को एस्ट्रस चक्र कहा जाता है। लेकिन महिलाओ में कोई भी रेस्टिंग फेज नहीं होता है तथा इनमे एस्ट्रस चक्र निरंतर चलता रहता है। मानव महिलाये कभी भी गर्भ धारण कर सकती है।
विभिन्न हार्मोन्स का इस चक्र पर प्रभाव –
कुछ जानवरों में मस्तिष्क के हाइपोथैलेमिक क्षेत्र पर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के माध्यम से विभिन्न बाहरी उत्तेजनाएं काम करती हैं। हाइपोथैलेमस पिट्यूटरी ग्रंथि से निकलने वाले होर्मोनेस को नियंत्रित करता है। ये हॉर्मोन डिम्बग्रंथि के रोम को पकने में मदद करते है। ओवा और कोशिकीय संरचनाएँ चारो और से इसे घेरे रहती है।
ये पिट्यूटरी हार्मोन, जिन्हें गोनैडोट्रोपिक हार्मोन कहा जाता है, रक्तप्रवाह के माध्यम से अंडाशय तक पहुँचते है। प्राइमेट्स में हाइपोथैलेमिक तंत्र बाहरी उत्तेजना से स्वतंत्र होता है तथा गर्भाशय की और जाने वाली नलिका में ओवा का स्त्राव नियमित रूप से होता रहता है। सहवास के अभाव में भी यह क्रिया निरन्तर होती रहती है।
पिट्यूटरी गोनाडोट्रोपिक हार्मोन के प्रभाव में आकर अंडाशय अन्य हार्मोन का उत्पादन करता है। इन हॉर्मोन्स की वजह से गर्भाशय और योनि की संवहन क्षमता में वृद्धि होती है। यह हॉर्मोन्स मुख्यतया एस्ट्रोजेन्स है जिसमे 17 बीटा-एस्ट्राडियोल – और प्रोजेस्टेरोन मुख्य है।
मासिक धर्म या माहवारी के मुख्य चरण –
समान्यतया मनुष्यो में यह चक्र 28 दिन का होता है लेकिन कई महिलाओ में यह 21 का या 35 दिन का भी हो सकता है। मासिक धर्म का प्रथम दिन इस चक्र का भी प्रथम दिवस माना जाता है। इस चक्र में शुरुआत के 5 दिनों में स्त्राव होता है। इसके बाद विपुल अवस्था की शुरुआत होती है जो 14 दिनों तक रहती है।
विपुल अवस्था तुरंत बाद स्त्राव अवस्था शुरू हो जाती है जो अगली माहवारी के प्रथम दिवस तक रहती है। मासिक धर्म की बाहरी अभिव्यक्ति गर्भाशय की लाइनिंग के परिवर्तन पर निर्भर करती है। इस लाइनिंग की एंडोमेट्रियम या अंतर्गर्भाशयकला भी कहा जाता है। इस एंडोमेट्रियम में ट्यूबलर ग्रंथियां होती है जो गर्भाशय की गुहा में खुलती है।
ग्रंथिया संवहनी ढांचे से स्ट्रोमा के द्धारा पृथक रहती है।
ओवम या अंडे के बनने की प्रक्रिया –
माहवारी में अंत में और विपुल अवस्था के शुरुआत में एंडोमेट्रियम बहुत ही पतला होता है। इसकी ग्रंथियाँ सीधी होती है तथा अंडाशय भी निष्क्रिय अवस्था में होता है। पिट्यूटरी ग्रंथि से निकलने वाले गोनाडोट्रोपिक हार्मोन के प्रभाव के प्रभाव में एक डिम्बग्रंथि कूप (कभी-कभी एक से अधिक) एक अंडाशय में परिपक्व होने लगता है।
इस डिम्बग्रंथि कूप में डिंब होता है, जो 0.14 मिलीमीटर (0.006 इंच) व्यास की एक कोशिका होती है। यह डिंब छोटी कोशिकाओं के समूह से घिरा होता है, जिसे ग्रैनुलोसा कोशिकाएं कहा जाता है । ये ग्रैनुलोसा कोशिकाएं कई गुना बढ़ती है और डिंब के चारो और गोल संरचना बना लेती है। ये ग्रैनुलोसा कोशिकाएं एक एस्ट्रोजेनिक हार्मोन, एस्ट्राडियोल का स्राव करती है।
यह हार्मोन एंडोमेट्रियम की विपुल अवस्था में परिवर्तन करता है जिससे इसकी ग्रंथियाँ लम्बी हो जाती है। इसी कारण एंडोमेट्रियम मोटा और अधिक संवहनी हो जाता है।
डिंबोत्सर्जन (Ovulation) की प्रक्रिया –
मासिक धर्म की मध्यावधि में डिंबोत्सर्जन होता है। डिंब, डिंबग्रंथि से अलग होकर फैलोपियन ट्यूब में आ जाता है। फैलोपियन ट्यूब के द्वारा डिम्ब या अंडे को गर्भाशय तक ले जाया जाता है। ओव्यूलेशन के बाद ग्रैन्यूलोसा कोशिकाओं के कूप से डिम्ब निकल जाता है ओवम या डिम्ब से पीला लिपिड निकलता है जिसे ल्यूटिन कोशिकाएं कहा जाता है।
इससे परिवर्तित कूप को कॉर्पस ल्यूटियम कहा जाता है। कॉर्पस ल्यूटियम एस्ट्रोजेन का स्राव जारी रखता है तथा अब प्रोजेस्टेरोन को भी स्रावित करने लगता है। यह प्रोजेस्टेरोन हार्मोन एंडोमेट्रियम में स्त्रावी चरण को शुरू करता है। एंडोमेट्रियल ग्रंथियां स्राव के कारण बड़ी ही जाती है तथा स्ट्रोमल कोशिकाएं सूज जाती हैं। मासिक धर्म चक्र के अंत में एंडोमेट्रियम की स्तिथि प्रारंभिक स्तिथि से भिन्न होती है। यह भिन्न एंडोमेट्रियम अब अंडे के आगमन के लिए तैयार होता है।
इस प्रकार यदि यह ओवम निषेचित हो जाता है तो स्त्रावी चरण में ही ओवम गर्भाशय की गुहा में पहुँच जाता है। यही पर वो एंडोमेट्रियम से चिपक कर अपना विकास शुरू कर देता है। इसके विपरीत अगर निषेचन नहीं होता है तो एंडोमेट्रियम अलग हो जाता है और माहवारी की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
निषेचन के अभाव डिंब मृत हो जाता है तो कॉर्पस ल्यूटियम का भी शय होना शुरू हो जाता है और हार्मोन्स का स्त्राव भी बंद हो जाता है। एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के अभाव में एंडोमेट्रियम की रक्त वाहिकाओं में ऐंठन शुरू हो जाती है और एंडोमेट्रियम की ऊपरी परत मृत हो जाती है।
विघटित एंडोमेट्रियम कुछ रक्त के साथ बाहर आता है। एंडोमेट्रियम में प्लास्मिन नामक एक एंजाइम होता है जो रक्त के थक्कों को घोलता है। इस प्रक्रिया के कारण मासिक धर्म सामान्य तरल के रूप में प्रवाहित हो पाता है। इस स्त्राव के कारण लगभग 50 मिलीलीटर रक्त की हानि होती है।
हार्मोन्स के द्धारा मासिक धर्म का नियंत्रण –
डिम्बग्रंथि के हॉर्मोन रक्त में प्रवाहित होते है और मूत्र के द्धारा शरीर से बाहर उत्सर्जित किये जाते है। रसायनिक तरीको से इन हार्मोन्स की रक्त में उपस्तिथ मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है। कई प्राकर्तिक एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन शरीर में उपस्तिथ होते है। इसके अलावा इन हार्मोन्स के सिंथेटिक रूप भी उपलब्ध है।
इनमे से कई मुँह के द्धारा लिये जाते है। इन सिंथेटिक हार्मोन्स का उपयोग हार्मोनल विकारों के लिये तथा गर्भ निरोधकों के रूप में किया जाता है। अंड कोशिका के सभी चरण पिट्यूटरी ग्रंथि के द्धारा स्त्रावित गोनैडोट्रोपिक हार्मोन पर निर्भर करते है।
इनमे 3 गोनैडोट्रोपिक हार्मोन मुख्य है –
- कूप-उत्तेजक हार्मोन (एफएसएच)
- ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच)
- ल्यूटोट्रोपिक हार्मोन (एलटीएच)
एफएसएच स्त्राव विपुल चरण के दौरान अत्यधिक होता है जबकि एलएच का स्त्राव मासिक धर्म चक्र के मध्य में अत्यधिक होता है। यह माना जाता है कि एफएसएच और एलएच की अनुक्रमिक कार्रवाई कूप और ओव्यूलेशन के परिपक्व होने के कारण होती है।
कुछ जानवरों में, कॉर्पस ल्यूटियम के रखरखाव के लिए एलटीएच आवश्यक होता है। बांझपन का इलाज करने के लिए सिर्फ एफएसएच और एलएच का ही उपयोग किया जाता है। गर्भ में एक से अधिक बच्चो का होना एफएसएच की अत्यधिक खुराक के कारण ही होता है।
पिट्यूटरी ग्रंथि एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन करने के लिए अंडाशय को उत्तेजित करती है। प्रक्रिया एक नकारात्मक प्रक्रिया है जिससे पिट्यूटरी ग्रंथि से एफएसएच और एलएच का स्त्राव भी अधिक होता है। प्रोजेस्टेरोन का स्त्राव एलएच के स्त्राव को नियंत्रित करता है।
इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में पहले पिट्यूटरी ग्रंथि अंडाशय को उत्तेजित को उत्तेजित करती है और फिर अंडाशय पिट्यूटरी ग्रंथि के स्त्राव को नियंत्रित करती है। इस पूरी प्रक्रिया को हाइपोथैलेमस के द्धारा नियंत्रित किया जाता है। फिर भी मुँह से ली जाने वाली गर्भ निरोधकों के द्धारा ओव्यूलेशन को बाधित किया जा सकता है। इन मौखिक गर्भ निरोधकों में एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टोजेन होते हैं, जो की प्रोजेस्टेरोन के संशोधन से बनती है।
पिट्यूटरी ग्रंथि अग्र भाग एक डण्डीनुमा संरचना के द्धारा हाइपोथैलेमिक क्षेत्र से जुड़ा रहता है।
पिट्यूटरी ग्रंथि अग्र भाग एक डण्डीनुमा संरचना के द्धारा हाइपोथैलेमिक क्षेत्र से जुड़ा रहता है। पिट्यूटरी ग्रंथि अग्र भाग कई हार्मोन्स नियंत्रित करता है जिसमे अधिवृक्क और थायरॉयड ग्रंथियों के हार्मोन्स मुख्य है। हाइपोथैलेमस से निकलने वाले द्रव्य को डंडीनुमा संरचना से पिट्यूटरी ग्रंथि में भेजा जाता है। इस क्रिया से पिट्यूटरी ग्रंथि से कई हार्मोन्स स्त्रावित होते है जिसमे एफएसएच और एलएच मुख्य है।
मस्तिष्क के मुख्य केंद्र हाइपोथैलेमिक फ़ंक्शन को प्रभावित करते है जिसके कारण मासिक धर्म की अस्थायी गड़बड़ी उत्पन्न होती है। जैसे की भावनात्मक तनाव में ऐसा होता है।
ओव्यूलेशन और निषेचन का समय –
ओव्यूलेशन प्रत्येक मासिक धर्म चक्र के मध्य में होता है। इसके बाद ओवम ज्यादा से ज्यादा दो दिन के लिये निषेचन करने योग्य रहता है। लगभग सभी महिलाओ में ओव्यूलेशन का समय नियत ही होता है। जिन महिलाओ में मासिक धर्म चक्र लम्बा या छोटा होता है उनमे ओव्यूलेशन अनियमित होता है।
मासिक धर्म चक्र में विपुल चरण के अधिक लम्बे होने के कारण यह चक्र लम्बा हो जाता है। इसलिए निषेचन के लिये उपयुक्त समय मासिक धर्म चक्र के मध्य में ही होता है।
महिलाओ में प्रथम मासिक धर्म चक्र –
प्रथम मासिक धर्म चक्र की शुरुआत 11 से 13 वर्ष की आयु से होती है। लेकिन कई बच्चो में यह जल्दी या देर से भी हो सकता है। प्रथम मासिक धर्म चक्र की शुरुआत 16 की आयु तक नहीं होती है तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। मासिक धर्म चक्र एस्ट्रोजेनिक गतिविधि के अन्य लक्षणों को भी प्रदर्शित करता है। इन लक्षणों में स्तनों तथा गर्भाशय के आकार में वृद्धि मुख्य है।
मासिक धर्म चक्र शुरू होने के समय में कभी-कभी अत्यधिक रक्त स्त्राव भी होता है जो की आम बात है। यह अनियमित रक्त स्त्राव समय के साथ ठीक हो जाता है।
सामान्य माहवारी –
महिलाओ में सामान्य माहवारी का समय चार दिन तक का होता है। लेकिन कई महिलाओ में यह समय कम या ज्यादा भी हो सकता है। कई महिलाओ में माहवारी से पहले कुछ लक्षण भी दिखाई देने लगते है, जैसे – मानसिक तनाव, स्तनों में तनाव आदि।
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Research Reference :-
“Women temporarily synchronize their menstrual cycles with the luminance and gravimetric cycles of the Moon” by C. Helfrich-Förster, S. Monecke, I. Spiousas, T. Hovestadt, O. Mitesser and T. A. Wehr, 27 January 2021, Science Advances.
DOI: 10.1126/sciadv.abe1358
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