24 जनवरी राष्ट्रीय बालिका दिवस पर हमें किशोरियों के जीवन पर माहमारी के असर और उनके जीवन को और बेहतर बनाने के लिए किये जाने वाले प्रयासों को देखना चाहिये और उन्हें अमल में लाना चाहिये। हमें चाहिये की हम उनकी भावनाओ और जरूरतो दोनों को समझे।
देश में 120 मिलियन किशोर लड़कियाँ है, जो की देश की जनसँख्या का लगभग 10वां हिस्सा है। पिछले दशकों में हुए सुधारो को आज की स्थिति पुनः पीछे ढकेल रही है। किशोर लड़कियों का कल्याण महिलाओ की कार्यबल में भागीदारी, रुग्णता दर तथा मृत्यु दर पर निर्भर करती है।
बाल विवाह की दर वर्ष 2000 में 50% थी जो की घटकर आज 27% ही रह गयी है। सरकार के प्रयासों और कई गैर सरकारी संगठनो की बदौलत प्रसव के दौरान महिलाओ की मृत्यु दर में भी कमी आयी है। सरकार सहित बड़े पैमाने पर परिवर्तन लेन वाले लोगो ने इन किशोरियों के जीवन में परिवर्तन लेन का प्रयास किया और सफल भी हुए। इसके बाद महामारी का आगमन हुआ और कॉलेज जाने तथा ऑफिस में काम करने वाली किशोरियाँ घर तक ही सीमित रह गयी।
24 जनवरी राष्ट्रीय बालिका दिवस थीम – किशोरियों को उनका हक़ दिलवाना
राष्ट्रीय बालिका दिवस व महामारी का बुरा प्रभाव
बिहार, झारखण्ड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में किये गये एक सर्वेक्षण के पाया गया की घर पर रहकर किशोर लड़कियों ने पढाई के बजाय सबसे ज्यादा समय घर के काम में तथा टीवी देखने में बिताया है। इनमे से कई लड़कियों के पास इंटरनेट की उचित सुविधा ही नहीं है तथा केवल 22% लड़कियाँ ही ऑनलाइन पढ़ाई के तरीके को पहचानती है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया की कई लड़कियों ने घर पर रहते समय घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न की सम्भावना को भी महसूस किया। लड़को की तुलना में लड़कियों को बाहर जाने की अनुमति कम है साथ ही इस महामारी में उनके लिये सुरक्षित स्थानों में भी कमी हुई है।
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राष्ट्रीय बालिका दिवस:चुनौतियों को समझना व उनका निदान करना
इस समय किशोरियों पर महामारी के प्रभाव को समझकर इन समस्याओ पर नियंत्रण पाया जा सकता है। भारत सरकार के द्धारा चलाई जा रही कई महत्वकांशी योजनाओ जैसे राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम तथा स्कूल हेल्थ एंड वैलनेस प्रोग्राम, को भी और सुदृढ़ करके इस महामारी से लड़ने के लिये तैयार किया जा सकता है।
केरल सरकार के द्धारा चलाया गया “फर्स्ट बेल ” कर्यक्रम इसका उदाहरण है। इस कार्यक्रम में “Victor KITE ” टीवी चैनल के द्धारा 600 से भी अधिक कक्षाएँ संचालित की जाती है जिसके लिये किसी इंटरनेट या स्मार्टफोन की आवश्यकता नहीं है।
भारत सरकार के पास “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, स्किल इंडिया जैसी कार्यक्रम होने कर भी स्थानीय स्तर पर इन्हे मजबूत करना आवश्यक है। इस प्रकार ही महामारी को ध्यान में रखकर कार्य करने से ही हमें सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हो सकेगी और किशोर लड़कियों का जीवन भी सुदृढ़ हो सकेगा।
REFERENCE:- https://www.thehindu.com/opinion/editorial