उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected Tropical Diseases – NTDs) दुनिया भर में अरबों लोगों को प्रभावित करने वाले रोगों का समूह है। ये रोग मुख्य रूप से गरीब और पिछड़े क्षेत्रों में पाए जाते हैं और इनकी रोकथाम और उपचार के लिए विश्व स्तर पर ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। NTDs में लिम्फेटिक फाइलेरियासिस, ट्रेकोमा, डेंगू, लेप्रोसी, और ह्यूमन अफ्रीकन ट्रिपैनोसोमायसिस जैसे रोग शामिल हैं।
NTDs के उन्मूलन के लिए कई वैश्विक पहलों ने उल्लेखनीय योगदान दिया है। इस लेख में हम NTDs की गंभीरता, उनके उन्मूलन के लिए वैश्विक प्रयासों, और भारत जैसे विकासशील देशों के योगदान पर चर्चा करेंगे।
उपेक्षित उष्णकटिबंधीय (Neglected Tropical Diseases) रोगों का महत्व
NTDs का प्रभाव केवल स्वास्थ्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये सामाजिक-आर्थिक विकास पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं। ये रोग:
- गरीबी और असमानता को बढ़ाते हैं – NTDs मुख्यतः गरीब समुदायों को प्रभावित करते हैं और उनकी उत्पादकता को कम करते हैं।
- शारीरिक विकलांगता और मानसिक तनाव – ये रोग लंबे समय तक विकलांगता का कारण बन सकते हैं, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ – इन रोगों का प्रबंधन स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है।
प्रमुख NTDs (Neglected Tropical Diseases)
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 20 से अधिक NTDs की पहचान की है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- लिम्फेटिक फाइलेरियासिस (एलिफेंटियासिस)
- आंतों के कृमि संक्रमण
- ट्रेकोमा
- ह्यूमन अफ्रीकन ट्रिपैनोसोमायसिस (स्लीपिंग सिकनेस)
- डेंगू और चिकनगुनिया
- कुष्ठ रोग (लेप्रोसी)
- शिस्टोसोमायसिस
- यकृत फ्लूक (लिवर फ्लूक) संक्रमण
- काला अजार
इन रोगों का प्रसार ज्यादातर उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होता है, जहां स्वच्छता की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है।
NTDs (Neglected Tropical Diseases) के उन्मूलन के लिए वैश्विक पहल
1. लंदन डिक्लेरेशन (2012)
लंदन डिक्लेरेशन 2012 में शुरू की गई एक प्रमुख वैश्विक पहल है, जिसका उद्देश्य 2020 तक कम से कम 10 NTDs का उन्मूलन करना था। इस पहल में दवा कंपनियों, सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और शोध संस्थानों ने भाग लिया। प्रमुख लक्ष्य थे:
- मुफ्त दवाओं की आपूर्ति
- अनुसंधान और विकास को बढ़ावा
- प्रभावित समुदायों को सशक्त बनाना
यह पहल NTDs की रोकथाम के लिए इतिहास की सबसे बड़ी सार्वजनिक-निजी साझेदारी मानी जाती है। इसके माध्यम से अरबों लोगों तक मुफ्त दवाएं पहुंचाई गईं।
2. WHO का रोडमैप (2021-2030)
WHO ने 2021-2030 के लिए एक नई रणनीति पेश की है, जिसका उद्देश्य NTDs के बोझ को 90% तक कम करना है। इस रोडमैप के प्रमुख बिंदु हैं:
- 100 देशों में NTDs का उन्मूलन
- नई वैक्सीन और उपचारों का विकास
- मल्टीसेक्टरल अप्रोच
इस रोडमैप में स्वास्थ्य, शिक्षा, और स्वच्छता जैसे विभिन्न क्षेत्रों को एक साथ लाने की योजना बनाई गई है, ताकि NTDs के उन्मूलन में तेजी लाई जा सके।
3. यूनिसेफ और NTDs (Neglected Tropical Diseases)
यूनिसेफ ने NTDs के उन्मूलन में पानी, स्वच्छता और स्वच्छता (WASH) के महत्व को उजागर किया है। साफ पानी और स्वच्छता सेवाओं की उपलब्धता से ट्रेकोमा और आंतों के कीड़ों जैसे रोगों की रोकथाम की जा सकती है। यूनिसेफ ने स्कूली बच्चों में जागरूकता फैलाने और स्वास्थ्यकर आदतों को प्रोत्साहित करने में भी अहम भूमिका निभाई है।
4. ड्रग डोनेशन प्रोग्राम
फार्मास्युटिकल कंपनियां, जैसे ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GSK) और मर्क, मुफ्त दवाओं की आपूर्ति करती हैं। ये कार्यक्रम करोड़ों लोगों तक दवाएं पहुंचाने में सफल रहे हैं। उदाहरण के लिए, GSK ने लिम्फेटिक फाइलेरियासिस के उन्मूलन के लिए अरबों दवाओं का दान किया है।
5. बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन
गेट्स फाउंडेशन ने NTDs पर अनुसंधान और विकास के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया है। उन्होंने नई वैक्सीन, दवाओं और नैदानिक तकनीकों के विकास का समर्थन किया है। इसके अलावा, गेट्स फाउंडेशन ने उन्नत निगरानी और डेटा विश्लेषण तकनीकों को भी बढ़ावा दिया है।
6. डिजिटल तकनीक और NTDs (Neglected Tropical Diseases)
डिजिटल हेल्थ टूल्स, जैसे मोबाइल एप्लिकेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ने NTDs की निगरानी और उपचार में क्रांति ला दी है। इन उपकरणों के माध्यम से रोगियों तक उपचार को तेज और प्रभावी ढंग से पहुंचाया जा सकता है।
भारत में NTDs (Neglected Tropical Diseases) और उनकी रोकथाम
भारत NTDs से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। यहां के गर्म और आर्द्र जलवायु, आबादी का घनत्व, और गरीबी इन रोगों के प्रसार में योगदान करते हैं।
1. राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम (NFEP)
भारत में फाइलेरियासिस के मामलों को खत्म करने के लिए मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) रणनीति लागू की गई है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य सामूहिक स्तर पर दवाएं वितरित करना और रोग के प्रसार को रोकना है।
2. राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP)
भारत ने 2005 में कुष्ठ रोग के उन्मूलन की घोषणा की, लेकिन अभी भी नए मामले सामने आते हैं। सरकार ने इस दिशा में जागरूकता अभियान और मुफ्त उपचार की सुविधाएं प्रदान की हैं।
3. डेंगू और मलेरिया नियंत्रण
स्वास्थ्य मंत्रालय ने मच्छर-जनित रोगों को नियंत्रित करने के लिए वेक्टर कंट्रोल कार्यक्रम लागू किए हैं। इनमें मच्छरदानी, कीटनाशक, और समुदाय जागरूकता अभियान शामिल हैं।
4. स्कूल-आधारित डी-वर्मिंग प्रोग्राम
स्कूलों में बच्चों को कृमि संक्रमण से बचाने के लिए दवाएं दी जाती हैं। यह कार्यक्रम लाखों बच्चों तक पहुंच चुका है और आंतों के संक्रमण को कम करने में प्रभावी साबित हुआ है।
5. WASH पहल
सरकार ने जल और स्वच्छता के माध्यम से NTDs के प्रसार को रोकने के लिए स्वच्छ भारत अभियान जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं।
चुनौतियां
NTDs के उन्मूलन में कई चुनौतियां हैं:
- स्वास्थ्य सेवाओं की कमी – ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित है।
- अपर्याप्त फंडिंग – वित्तीय संसाधनों की कमी से कार्यक्रमों की प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
- सामाजिक कलंक – कुष्ठ रोग जैसे रोगों से जुड़े सामाजिक कलंक के कारण रोगियों को चिकित्सा सहायता लेने में कठिनाई होती है।
- जलवायु परिवर्तन – जलवायु परिवर्तन से डेंगू और अन्य वेक्टर-बोर्न रोगों का प्रसार बढ़ रहा है।
- शहरीकरण और प्रवास – शहरीकरण और बड़े पैमाने पर प्रवास ने रोग नियंत्रण में बाधाएं उत्पन्न की हैं।
समाधान और भविष्य की रणनीतियां
- मल्टीसेक्टरल अप्रोच – स्वास्थ्य, शिक्षा, और स्वच्छता क्षेत्रों के बीच समन्वय बढ़ाना।
- डिजिटल हेल्थ टेक्नोलॉजी – डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करके रोग निगरानी और उपचार में सुधार।
- सामुदायिक सहभागिता – प्रभावित समुदायों को जागरूक और सशक्त बनाना।
- पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप – निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के बीच सहयोग बढ़ाना।
- अनुसंधान और विकास – नई दवाओं और वैक्सीन पर जोर।
- जलवायु अनुकूल नीतियां – जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए नीतियां बनाना।
- वैश्विक सहयोग – अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और देशों के बीच सहयोग बढ़ाना।
निष्कर्ष
उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों का उन्मूलन स्वास्थ्य और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। वैश्विक पहल, जैसे लंदन डिक्लेरेशन और WHO का रोडमैप, इन रोगों के खिलाफ लड़ाई में मील का पत्थर साबित हुए हैं।
भारत जैसे देश, जहां NTDs का बोझ अधिक है, उन्नत योजनाओं और ठोस नीतियों के माध्यम से इन रोगों को नियंत्रित कर सकते हैं। सामूहिक प्रयास, समुदाय की भागीदारी और प्रभावी रणनीतियों के माध्यम से NTDs का उन्मूलन संभव है, जिससे एक स्वस्थ और उत्पादक समाज का निर्माण हो सके।
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