हलो दोस्तों, सिविल सर्विसेज हब पर आपका स्वागत है। दोस्तों आपने चावल के बारे में तो सुना ही होगा और इसका सेवन भी अवश्य किया होगा। चावल को लगभग 10,000 वर्षो मनुष्य के द्वारा उगाया गया था। आज के समय में लगभग 3 अरब लोगो के भोजन का अहम हिस्सा है। हाल में किये गये एक अध्ययन में है कि आज के चावल में आवश्यक पोषक तत्वों का घनत्व उतना नहीं है जितना कि 50 साल पहले हुआ करता था। आज का हमारा Rice & Wheat Losing Their Nutrients लेख इसी शोध के बारे में है। तो शोध के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिये लेख को पूरा पढ़े।
Rice & Wheat Losing Their Nutrients:-
शोधकर्ताओं ने चावल और गेहूँ के बीजो को ICAR के जीन बैंक से प्राप्त किया। ICAR से सम्बंधित संस्थाएं हमारे देश की पुरानी किस्मों या नस्लों को संरक्षित और संग्रहित करते हैं। ये संस्थान आनुवंशिक सामग्री के भंडार हैं। यदि आप वास्तविक किस्म का अध्ययन करना चाहते हैं को उसे पाने के लिये यही सही विकल्प है।
इसके बाद एकत्रित बीजों को प्रयोगशाला में अंकुरित किया गया, गमलों में बोया गया और बाहरी वातावरण में रखा गया। उन्हें आवश्यक उर्वरकों के साथ उपचारित किया गया तथा कटाई के बाद उनकी पोषक सामग्री मापने के लिये बीजों का अध्ययन किया गया।
गिरते पोषक तत्व:-
टीम ने नोट किया कि 1960 के दशक में जारी चावल की किस्मों के अनाज में जस्ता (Zinc) और लोहे की सांद्रता 27.1 मिलीग्राम / किग्रा और 59.8 मिलीग्राम / किग्रा थी। यह 2000 के दशक में क्रमशः 20.6 मिलीग्राम/किलोग्राम और 43.1 मिलीग्राम/किलोग्राम तक कम हो गया। वर्ष 2010 में यह सांद्रता और भी गिरकर 23.5 मिलीग्राम/किग्रा तथा 46.4 मिलीग्राम/किग्रा रह गई थी।
पेपर के पहले लेखक सोवन देबनाथ बताते हैं कि इस तरह की कमी के कई संभावित कारण हो सकते हैं। अनाज की उपज बढ़ाने के लिये जो उपाय किये गए है वह भी एक मुख्य कारणों में से एक है। इसका मतलब यह है कि उपज में वृद्धि की दर पौधों द्वारा पोषक तत्व लेने की दर से मेल नहीं कहती है। साथ ही, पौधों को सहारा देने वाली मिट्टी में पौधों के लिए उपलब्ध पोषक तत्व कम मात्रा में हो सकते हैं।
जस्ता और लोहे की कमी विश्व स्तर पर अरबों लोगों को प्रभावित करती है और इस कमी वाले देशों में मुख्य रूप से चावल, गेहूं, मक्का और जौ से बने आहार होते हैं। हालांकि भारत सरकार ने स्कूली बच्चों को पूरक गोलियां उपलब्ध कराने जैसी पहल की है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। हमें बायोफोर्टिफिकेशन जैसे अन्य विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जहां हम सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य फसलों का प्रजनन करते हैं।
टिकाऊ समाधान उपलब्ध नहीं होना –
पेपर का निष्कर्ष है कि “भारतीय आबादी में जस्ता और लौह कुपोषण को कम करने के लिए चावल और गेहूं की नई जारी (1990 और बाद की) किस्में उगाना एक स्थायी विकल्प नहीं हो सकता है। भविष्य के प्रजनन कार्यक्रमों में किस्मों को जारी करते हुए अनाज आयनोम (अर्थात पोषण संबंधी मेकअप) में सुधार करके इन नकारात्मक प्रभावों को दूर करने की आवश्यकता है।
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Reference:- The Hindu