Schizophrenia Unveiled: Surprising Brain Patterns

  1. सकारात्मक लक्षण: इन लक्षणों में भ्रम (delusions), मतिभ्रम (hallucinations) और अजीबोगरीब विचार प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। भ्रम से व्यक्ति को वास्तविकता से परे कुछ ऐसे अनुभव होते हैं जो सच नहीं होते, जैसे कि कोई उसका पीछा कर रहा है या उसके खिलाफ षड्यंत्र रचा जा रहा है। मतिभ्रम में व्यक्ति को ऐसी आवाज़ें सुनाई देती हैं या दृश्य दिखाई देते हैं जो वास्तव में नहीं होते। इसके साथ ही, व्यक्ति असामान्य और अजीब व्यवहार करने लगता है जो सामान्य समाज में अनुकूल नहीं होता।
  2. नकारात्मक लक्षण: ये लक्षण व्यक्ति की सामान्य क्षमताओं में कमी का कारण बनते हैं। इसमें व्यक्ति की सामाजिक सहभागिता में कमी, आनंद की अनुभूति में कमी, ऊर्जा की कमी, और संचार में अवरोध शामिल होते हैं। स्किज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोग अक्सर अपने में सिमट जाते हैं और किसी भी सामाजिक या भावनात्मक गतिविधि में रुचि नहीं लेते। इन लक्षणों के कारण व्यक्ति धीरे-धीरे समाज से कट जाता है और एकांतप्रिय बन जाता है।
  3. संज्ञानात्मक लक्षण: संज्ञानात्मक लक्षण व्यक्ति की सोचने की क्षमता, स्मरण शक्ति, और निर्णय लेने में कठिनाई उत्पन्न करते हैं। यह लक्षण स्पष्ट रूप से सोचने और समझने में समस्या उत्पन्न करते हैं। संज्ञानात्मक लक्षणों के कारण व्यक्ति की समस्या को हल करने की क्षमता, निर्णय लेने की शक्ति और तर्कशक्ति कमजोर हो जाती है, जिससे उसके सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में कठिनाइयां बढ़ जाती हैं।
  1. प्रांतस्था (कॉर्टेक्स) का पतलापन: मस्तिष्क के बाहरी हिस्से को प्रांतस्था कहते हैं, जो सोचने, निर्णय लेने और स्मरण शक्ति जैसी संज्ञानात्मक क्षमताओं को नियंत्रित करता है। स्किज़ोफ्रेनिया के रोगियों में प्रांतस्था की मोटाई में कमी पाई गई है। प्रांतस्था के पतलेपन के कारण व्यक्ति की तर्कशक्ति, निर्णय लेने की क्षमता और भावना के प्रति प्रतिक्रिया कमजोर हो जाती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह पतलापन मस्तिष्क की संरचना और तंत्रिका कोशिकाओं के बीच संचार में कमी लाता है, जिससे संज्ञानात्मक लक्षण उत्पन्न होते हैं।
  2. सफेद पदार्थ (व्हाइट मैटर) में कमी: मस्तिष्क में सफेद पदार्थ का कार्य विभिन्न मस्तिष्कीय क्षेत्रों के बीच संचार को सक्षम बनाना होता है। स्किज़ोफ्रेनिया के रोगियों में सफेद पदार्थ में कमी पाई जाती है, जिससे मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों के बीच समन्वय बिगड़ता है। सफेद पदार्थ की इस कमी के कारण व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमताएं प्रभावित होती हैं और उसकी सामान्य विचार प्रक्रिया बाधित हो जाती है।
  3. डोपामिन गतिविधि में असामान्यता: डोपामिन एक महत्वपूर्ण न्यूरोट्रांसमीटर है जो मस्तिष्क में संदेश पहुंचाने का कार्य करता है। स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) में डोपामिन की गतिविधि में असामान्यता देखी जाती है, जिससे भ्रम, मतिभ्रम और असामान्य विचार जैसी सकारात्मक लक्षण उत्पन्न होते हैं। मस्तिष्क में अत्यधिक डोपामिन गतिविधि से व्यक्ति में अति मानसिक उत्तेजना उत्पन्न होती है, जो उसकी सोच और व्यवहार को असामान्य बनाता है।
  4. हिप्पोकैंपस का सिकुड़ना: हिप्पोकैंपस मस्तिष्क का वह हिस्सा है जो स्मृति और सीखने की क्षमता को नियंत्रित करता है। स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) के रोगियों में हिप्पोकैंपस के आकार में कमी देखी गई है। हिप्पोकैंपस के सिकुड़ने से व्यक्ति की याददाश्त और सीखने की क्षमता में कमी आती है, जिससे उसे दैनिक जीवन की सामान्य गतिविधियों में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
  5. तंत्रिका नेटवर्क में गड़बड़ी: मस्तिष्क में कई तंत्रिका नेटवर्क होते हैं जो संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को संचालित करते हैं। स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) में इन नेटवर्क्स में गड़बड़ी पाई जाती है, जिससे व्यक्ति की तर्कशक्ति, सामाजिक समायोजन, और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। इन नेटवर्क्स में गड़बड़ी के कारण व्यक्ति का व्यवहार असामान्य हो जाता है और उसकी सोचने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
Schizophrenia
  • fMRI (फंक्शनल मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग): इस तकनीक का उपयोग मस्तिष्क में होने वाली गतिविधियों को रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है। fMRI के माध्यम से प्रांतस्था की मोटाई में कमी, सफेद पदार्थ की कमी, और हिप्पोकैंपस में बदलाव का अध्ययन किया जा सकता है।
  • PET स्कैन (पोज़िट्रोन एमिशन टोमोग्राफी): इस तकनीक के माध्यम से मस्तिष्क में डोपामिन गतिविधि का अध्ययन किया जा सकता है। PET स्कैन से डोपामिन असामान्यता की पहचान की जा सकती है, जो स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) के सकारात्मक लक्षणों के लिए जिम्मेदार होती है।
  • EEG (इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राफी): EEG का उपयोग मस्तिष्क की विद्युत गतिविधियों को मापने के लिए किया जाता है। स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) के रोगियों में EEG के माध्यम से मस्तिष्क की असामान्य विद्युत गतिविधियों का विश्लेषण किया जा सकता है, जिससे उनकी संज्ञानात्मक और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को समझा जा सकता है।
  1. मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: वैज्ञानिकों ने मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके मस्तिष्क में स्किज़ोफ्रेनिया से जुड़े पैटर्न की पहचान में नई उपलब्धियां हासिल की हैं। मशीन लर्निंग मॉडल्स, mri और अन्य मस्तिष्क इमेजिंग डेटा का विश्लेषण करके स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) के पैटर्न को पहचान सकते हैं। इस तकनीक की सटीकता 80-90% तक पहुंच गई है, जिससे स्किज़ोफ्रेनिया के प्रारंभिक निदान में मदद मिलती है।
  2. डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS): डीप ब्रेन स्टिमुलेशन एक आधुनिक चिकित्सा तकनीक है जिसमें मस्तिष्क के विशेष क्षेत्रों में इलेक्ट्रोड्स लगाए जाते हैं। ये इलेक्ट्रोड्स न्यूरोनल गतिविधियों को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। शोध में पाया गया है कि DBS का उपयोग नकारात्मक लक्षणों को कम करने में कारगर साबित हो सकता है, और यह संज्ञानात्मक कार्यों को सुधारने में भी मदद कर सकता है।
  3. ऑप्टोजेनेटिक्स: ऑप्टोजेनेटिक्स एक नई तकनीक है, जिसमें मस्तिष्क के विशेष न्यूरॉन्स को सक्रिय या निष्क्रिय करने के लिए प्रकाश का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक से मस्तिष्क में असामान्य गतिविधियों को लक्षित कर नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) के लक्षणों में सुधार हो सकता है। यह तकनीक अब तक प्रायोगिक चरण में है, लेकिन इसके परिणाम उत्साहवर्धक हैं।
  4. जीन एडिटिंग (CRISPR): CRISPR जीन एडिटिंग तकनीक स्किज़ोफ्रेनिया के संभावित उपचार में एक नई क्रांति ला रही है। इस तकनीक से वैज्ञानिक दोषपूर्ण जीन को बदलने का प्रयास कर रहे हैं, जो स्किज़ोफ्रेनिया के विकास में योगदान देते हैं। यह तकनीक अभी प्रयोगात्मक चरण में है, लेकिन इसके सफल परिणाम भविष्य में स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) के जड़ से इलाज की संभावना दिखाते हैं।
  5. जीवविज्ञान आधारित चिकित्सा: वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे जैविक तत्वों की पहचान की है जो स्किज़ोफ्रेनिया के रोगियों में कम होते हैं। यह पाया गया है कि इन तत्वों को पुनर्स्थापित करने से व्यक्ति की मानसिक स्थिति में सुधार हो सकता है। जैविक तत्वों का यह पुनर्स्थापन मस्तिष्क की संरचना और गतिविधियों को सामान्य बनाने में मदद करता है, जिससे रोगी के लक्षणों में कमी आती है।
Schizophrenia
  1. प्रारंभिक निदान: मस्तिष्क के असामान्य पैटर्न का विश्लेषण कर प्रारंभिक निदान संभव होता है, जिससे रोगी को जल्दी उपचार मिल सकता है और लक्षणों में कमी आ सकती है।
  2. सटीक और व्यक्तिगत उपचार: मस्तिष्क के विशिष्ट पैटर्न का अध्ययन करके डॉक्टर अधिक सटीक उपचार विधियां तैयार कर सकते हैं, जिससे रोगी की मानसिक स्थिति में तेजी से सुधार हो सकता है।
  3. लक्षणों में कमी: डोपामिन गतिविधियों को नियंत्रित कर भ्रम और मतिभ्रम जैसे लक्षणों में कमी लाई जा सकती है। इसके अलावा, सफेद पदार्थ में असामान्यता को सुधारने से संज्ञानात्मक लक्षणों में भी सुधार होता है।
  4. बचाव और निवारण के नए तरीके: मस्तिष्क के पैटर्न का गहन अध्ययन करके रोग के बचाव और निवारण के नए तरीके विकसित किए जा सकते हैं, जिससे स्किज़ोफ्रेनिया के मामलों को प्रारंभिक चरण में ही नियंत्रित किया जा सके।

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