सिविल सर्विसेज हब पर आपका स्वागत है। महराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत करने वाले नेता महाराष्ट्र के मंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि 40 विधायक उनके साथ हैं। रिपोर्टों में कहा गया है कि विद्रोही समूह में 55 सदस्यीय शिवसेना विधायक दल के 33 विधायक और राज्य सरकार का समर्थन करने वाले सात निर्दलीय शामिल हैं। यह सभी मिलकर सरकार गिराने का प्रयास कर सकते है और इन पर दल-बदल विरोधी कानून लागू किया जा सकता है। आज के What Is The Anti-Defection Law लेख में हम देखेंगे कि दल बदल विरोध कानून है क्या इस कानून की क्या उपयोगिता है।
मौजूदा 287 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 106 विधायक हैं। शिंदे के विद्रोह से पहले शिवसेना के पास सदन में 55 विधायक थे। राकांपा के 53 और कांग्रेस के 44 विधायकों ने सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी गठबंधन की 152 सीटे हो गई थी।
What Is The Anti-Defection Law?
संविधान के तहत, दलबदल विरोधी कानून के अनुसार सजा से बचने के लिये, एक विद्रोही समूह के पास पार्टी के कुल विधायकों का कम से कम दो-तिहाई हिस्सा होना चाहिए। दल-बदल विरोधी कानून व्यक्तिगत सांसदों/विधायकों को एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने पर दंडित करता है। साथ ही यह सांसद/विधायकों के एक समूह को दलबदल के लिए दंड को आमंत्रित किए बिना किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल होने (अर्थात विलय) की अनुमति भी देता है। किसी पार्टी के द्वारा दलबदल करने वाले विधायकों को प्रोत्साहित करने की रणनीति बनाने पर राजनीतिक दलों को दंडित नहीं करता है।
1985 में संसद ने इन प्रावधानों को संविधान में दसवीं अनुसूची के रूप में जोड़ा, जब राजीव गांधी प्रधान मंत्री थे।दलबदल विरोधी कानून का उद्देश्य विधायकों को दल बदलने से हतोत्साहित कर सरकारों में स्थिरता लाना था। यह 1967 के आम चुनावों के बाद पार्टी से अलग विधायकों द्वारा कई राज्य सरकारों को गिराने का प्रयास करने पर अस्तित्व में आया था।
But what constitutes defection? Who is the deciding authority?
कानून में तीन तरह के परिदृश्य शामिल हैं –
1. जब एक राजनीतिक दल के टिकट पर चुने गए विधायक उस पार्टी की सदस्यता “स्वेच्छा से छोड़ देते हैं” या पार्टी की इच्छा के खिलाफ विधायिका में मतदान करते हैं।
दसवीं अनुसूची में मूल रूप से उन मामलों में विधायकों की अयोग्यता का प्रावधान था जहां पार्टी की कुल संख्या का 1/3 से कम हिस्सा पार्टी से अलग हो गया हो या जहां एक विधायक दल के 2/3 से कम विधायकों का किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय हो गया हो। परन्तु वर्ष 2003 में एक संशोधन के बाद, एक तिहाई विभाजन प्रावधान हटा दिया गया था।
2. जब एक सांसद/विधायक जो सदन के निर्दलीय सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए हैं, बाद में किसी पार्टी में शामिल हो जाते हैं।
3. मनोनीत विधायकों सदन के सदस्य नियुक्त होने के छह महीने के भीतर किसी राजनीतिक दल में शामिल हो सकते हैं, परन्तु इसके बाद उन पर भी यह क़ानून लागू होता है।
इनमें से किसी भी परिदृश्य में कानून का उल्लंघन करने पर विधायक को दलबदल के लिए दंडित किया जा सकता है। ऐसे मामलों में विधायिका के पीठासीन अधिकारी या अध्यक्ष निर्णायक प्राधिकारी होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधायक पीठासीन अधिकारियों के फैसलों को उच्च न्यायपालिका में चुनौती दे सकते हैं।
Has the anti-defection law ensured the stability of governments?
पार्टियों को अपनी पार्टी के प्रति निष्ठा से बांधे रखने के लिये अक्सर रिसॉर्ट्स में विधायकों को रखना पड़ता है। हाल के उदाहरण भी देखने को मिले है। जैसे – राजस्थान (2020), महाराष्ट्र (2019), कर्नाटक (2019 और 2018), और तमिलनाडु (2017)
ज्यादातर मामलो में दल अपने फायदे के लिए दलबदल विरोधी कानून का इस्तेमाल करने में भी सफल रहे हैं। 2019 में गोवा में, कांग्रेस के 15 में से 10 विधायकों ने अपने विधायक दल का भाजपा में विलय कर दिया। उसी वर्ष, राजस्थान में, बसपा के छह विधायकों ने कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय कर दिया, और सिक्किम में, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के 15 में से 10 विधायक भाजपा में शामिल हो गए।
Have any suggestions been made to improve the law?
कुछ टिप्पणीकारों ने कहा है कि कानून विफल हो गया है और इसे हटाने की सिफारिश भी की है। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सुझाव दिया है कि इसे केवल अविश्वास प्रस्ताव में सरकारों को बचाने के लिए ही लागू होना चाहिए। चुनाव आयोग ने यह सुझाव दिया है कि सदन के पीठासीन अधिकारी को निर्णायक प्राधिकारी नहीं होना चाहिए। अक्सर पीठासीन अधिकारी के द्वारा पक्षपातपूर्ण रवैया देखा गया है।
राष्ट्रपति और राज्यपालों को दलबदल याचिकाओं पर सुनवाई करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद को उच्च न्यायपालिका के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण का गठन करना चाहिए ताकि दलबदल के मामलों को तेजी से और निष्पक्ष रूप से निस्तारित किया जा सके।
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