यूँ देखा जाये तो एलर्जी एक सामान्य रोग है परन्तु कभी-कभी यह भयानक रूप ले लेता है। एलर्जी का कोई इलाज अभी तक ज्ञात नहीं है। कई वर्षो से वैज्ञानिक इसी कार्य में लगे हुए है। कई लोगो तो खाद्य प्रदार्थो से भी एलर्जी होती है। आज तो हमारा टॉपिक Get Rid of Wheat and Peanut Allergy ही है। हाल ही में हुआ शोद के बारे में जानेंगे। UPSC के लिहाज़ से देखा जाये तो इस लेख से सम्बंधित कई शब्द उपयोगी है जिनका उल्लेख हम इस लेख में करेंगे तो पोस्ट को पूरा पढियेगा।
Get Rid of Wheat and Peanut Allergy:-
संयुक्त राज्य कृषि विभाग के कृषि विभाग ने ऐसे आठ खाद्य प्रदार्थो की खोज की है जिनसे सबसे ज्यादा एलर्जी होती है। 90% खाद्य प्रदार्थो से होने वाली एलर्जी के लिये यही समूह ज़िम्मेदार है। इन खाद्य पदार्थों में गेहूं और मूंगफली मुख्य है। अमेरिका की क्रॉप साइंस सोसाइटी के सदस्य सचिन रुस्तगी ने अध्ययन किया कि हम इन खाद्य पदार्थों की कम एलर्जिक किस्मों को विकसित करने के लिए प्रजनन का उपयोग कैसे कर सकते हैं।
रुस्तगी ने हाल ही में वर्चुअल 2020 एएसए-सीएसएसए-एसएसएसए वार्षिक बैठक में अपना शोध प्रस्तुत किया। गेहूं और मूंगफली के कारण होने वाली एलर्जी को इनका प्रयोग ना करके रोका जा सकता है। हलाकि यह कहने में आसान लगता है परन्तु है नहीं। आज के समय में गेहूं और मूंगफली हमारे भोज्य प्रदार्थो में सबसे ज्यादा प्रयोग में लाये जाने वाले प्रदार्थ है।
एलर्जी को दूर करने में समस्या (Problems in Allergen’s refusal):-
गेहूं और मूंगफली से परहेज करने का मतलब है स्वस्थ भोजन के उपयोग को छोड़ना। ये दो खाद्य पदार्थ पोषण संबंधी ऊर्जा के पावरहाउस हैं। एक और जहाँ गेहूं ऊर्जा, फाइबर और विटामिन का एक बड़ा स्रोत है वही दूसरी और मूंगफली प्रोटीन, अच्छा वसा, विटामिन और खनिज प्रदान करती है।
बेशक खाद्य एलर्जी वाले लोग खाद्य पदार्थों से बचने के लिए कठिन प्रयास कर सकते हैं, लेकिन वह एलर्जिक खाद्य दुर्घटनावश ग्रहण कर ही लिया जाता है। ऐसे में एलर्जेन के संपर्क में आने से अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ सकता है। ऐसा मूंगफली से होने वाली एलर्जी के केस में सबसे ज्यादा होता है।
रुस्तगी के अनुसार, गेहूँ और मूंगफली से बचना, भौगोलिक, सांस्कृतिक या आर्थिक कारणों के कारण इतना आसान नहीं है। रुस्तगी और उनके सहयोगी गेहूं और मूंगफली की कम एलर्जिक किस्मों को विकसित करने के लिए प्लांट ब्रीडिंग और जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग कर रहे हैं। उनका लक्ष्य एलर्जी वाले लोगों के लिए भोजन के विकल्प को बढ़ाना है। गेहूं के लिए, शोधकर्ताओं ने प्रोटीन के एक समूह पर ध्यान केंद्रित किया, जिसे ग्लूटेन कहा जाता है।
गेहूँ और मूंगफली से एलर्जी का मुख्य कारण (Main Cause of Allergy):-
ग्लूटेन आटे को लचीला बनती है तथा रोटी की बनावट में भी इसका विशेष योगदान है। लेकिन ग्लूटेन सीलिएक रोग वाले व्यक्तियों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का कारण बन सकता है। इसके अलावा, सामान्य लोगो को भी ग्लूटेन के लक्षणों का अनुभव होता है। शोधकर्ता कम ग्लूटेन वाली किस्मो का आपस में प्रजनन करने की कोशिश कर रहे हैं। ग्लूटेन बनाने के लिए आवश्यक जानकारी गेहूं के डीएनए में अंतर्निहित होती है।
लेकिन ग्लूटेन एक सिंगल प्रोटीन नहीं है, यह कई अलग-अलग प्रोटीनों का एक समूह है।ग्लूटेन प्रोटीन बनाने के लिये आवश्यक निर्देश कोशिका के विभिन्न जीनो में निहित होती है। गेहूँ में यह ग्लूटेन जीन कोशिका के पूरे डीएनए पर वितरित होते है। इस शोध में सबसे बड़ी चुनौती यही है कि एक ग्लूटेन को नियंत्रित करने वाले जीन के समूह को कैसे नियंत्रित करे।
मूंगफली के लिए भी स्थिति समान ही है। मूंगफली में भी एलर्जी को नियंत्रित करने वाले 16 अलग-अलग प्रोटीन होती है। इसमें भी सभी मूंगफली प्रोटीन समान रूप से एलर्जेनिक नहीं हैं। आधे से ज्यादा मूंगफली से एलर्जी वाले लोगो में 4 प्रोटीन ही एलर्जिक रिएक्शन को शुरू करते है। ऐसे में इन सभी जीनो पर एक साथ काम करना आसान नहीं है।
रोकथाम के उपाय (How we Can Prevent):-
कम एलर्जिक किस्म को फसल की किस्मो के साथ प्रजनन करवाने पर ही वांछनीय लक्षण प्राप्त हो सकते है। कम-एलर्जेनिक गेहूं विकसित करना तथा उसे व्यावसायिक रूप से उगाना ही प्रथम लक्ष्य है।पारंपरिक प्रजनन प्रयासों के अलावा, गेहूं और मूंगफली में एलर्जिक प्रोटीन को कम करने के लिए आनुवंशिक इंजीनियरिंग का भी उपयोग किया जा रहा है।
उदाहरण के लिए, CRISPR नामक एक तकनीक वैज्ञानिकों को सेल के डीएनए में बहुत सटीक बदलाव करने के काम में आती है। CRISPR द्धारा लक्षित जीन को परिवर्तित या उत्परिवर्तित किया जाता है। जिससे कोशिकाएं विशिष्ट प्रोटीन बनाने के लिए इन जीनों को ‘नहीं’ पढ़ पाती है और हमें वांछनीय परिणाम प्राप्त होते है।
गेहूं में ग्लूटेन जीन को बाधित करने से ग्लूटेन का स्तर काफी कम हो सकता है। मूंगफली के लिये भी इसी तरीके से काम करना होगा। यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है क्योंकि इस मास्टर नियामक को बाधित करने से गेहूं में कम मात्रा में ग्लूटेन बनेगा। एक एकल जीन को लक्षित करना कई ग्लूटेन जीनों को बाधित करने से कही ज्यादा आसान है।
गेहूं और मूंगफली प्रोटीन के प्रमुख स्रोत हैं। इनको सभी के लिये उपलब्ध करवाने के लिये किफायती तरीके खोजना बहुत जरूरी है। कम एलर्जिक गेहूं और मूंगफली विकसित करना ही सबसे पहला लक्ष्य है।
Get Rid of Wheat and Peanut Allergy लेख में प्रयुक्त महत्वपूर्ण शब्द:-
CRISPR-Cas9:-
एक जीवित जीव के डीएनए अनुक्रम में अत्यधिक विशिष्ट परिवर्तन करने की क्षमता को जीन संपादन कहा जाता है। जीन संपादन का का कार्य विशिष्ट एंजाइमों की मदद से किया जाता है जो विशेष रूप से नुक्लिएसेस का उपयोग करके किया जाता है। यह एंजाइम एक विशिष्ट डीएनए अनुक्रम को लक्षित करने के लिए बनाये गए हैं। यह उस डीएनए को हटाकर उसकी जगह दूसरा प्रतिस्थापित करने में सक्षम है। जीन संपादन की यह तकनीक एक अणु पर निर्भर है जिसे CRISPR-Cas9 कहा जाता है।
इस CRISPR-Cas9 की तकनीक ने सटीकता के साथ काम किया जिससे शोधकर्ताओं को वांछित स्थानों में डीएनए को हटाने और पुनः स्थापित करने में सफलता मिली।
Allergy:-
एलर्जी, शरीर द्धारा बाह्य पदार्थों (एंटीजन) के लिए अतिसंवेदनशीलता प्रतिक्रिया है। जबकि सामान मात्रा किसी बाह्य प्रदार्थ की अन्य लोगों के शरीर के भीतर हानिरहित हैं। एंटीजन जो एक एलर्जी की प्रतिक्रिया को शुरू करते हैं एलर्जन्स कहलाते है। विशिष्ट एलर्जी में परागकण, औषधियां, अलसी, जीवाणु, खाद्य पदार्थ और डाई या रसायन शामिल हैं। प्रतिरक्षा प्रणाली में कई तंत्र होते हैं जो सामान्य रूप से एंटीजन के खिलाफ शरीर की रक्षा करते हैं। इनमें से प्रमुख हैं लिम्फोसाइट्स। यह कोशिकाएं विशिष्ट एंटीजन पर प्रतिक्रिया करने में समर्थ है।
लिम्फोसाइटों भी दो प्रकार की होती हैं- बी कोशिकाएँ और टी कोशिकाएँ। बी कोशिकाएं एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं। ये कोशिकाएँ प्रोटीन होते हैं जो एंटीजन को बाँधती है और नष्ट या बेअसर करती हैं। टी कोशिकाएं एंटीबॉडी का उत्पादन नहीं करती हैं। वे कोशिकाएं सीधे एक एंटीजन से मिलती हैं और उस पर हमला करती हैं। एलर्जी की प्रतिक्रिया में तत्काल या विलंबित प्रभाव हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि एंटीजन बी कोशिकाओं या टी कोशिकाओं द्धारा प्रतिक्रिया कितने समय में दी जाती है।
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REFERENCE:- SCITECHDAILY
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