NASA Lunar Crater Radio Telescope | In Hindi |

हेलो दोस्तों सिविल सर्विसेज हब पर आपका स्वागत है। दोस्तों आपने नासा (NASA) के बारे में तो सुना ही होगा। नासा समय-समय पर ब्रहमांड के रहस्यों को जानने के लिए उपग्रह अंतरिक्ष में भेजता रहता है। नासा ने चन्द्रमा पर एक गड्ढे में तारो की मदद से एक उपग्रह स्थापित किया है। यह उपग्रह चंद्रमा पर होने वाली सुबह तथा अन्य क्रिया- कलापो के बारे में जानकारी देता है। आज अपने NASA Lunar Crater Radio Telescope आर्टिकल में हम इसी उपग्रह के बारे में विस्तार से जानेगे। तो पूरी जानकारी के लिये लेख को पूरा पढ़े। 

लूनर क्रेटर रेडियो टेलीस्कोप (LCRT) क्या है:-

NASA Lunar Crater Radio Telescope

वर्षो के विकास कार्य के बाद आखिर लूनर क्रेटर रेडियो टेलीस्कोप (LCRT) परियोजना को अगले चरण का क्रय शुरू करने के लिये $500,000 की सहायता राशि प्रदान की गयी है। यह परियोजना इनोवेटिव एडवांस्ड कॉन्सेप्ट (NIAC) कार्यक्रम के तहत शामिल है। हालांकि यह परियोजना नासा का मिशन नहीं है परन्तु यह LCRT मिशन ब्रह्मांड के बारे में मानवता के दृष्टिकोण को बदल सकता है।

LCRT का मुख्य उद्देश्य कॉस्मिक डार्क समयावधि में उत्पन्न लंबी-तरंग दैर्ध्य वाली रेडियो तरंगों को मापना होगा। 

कॉस्मिक डार्क ऐज-

यह एक समयावधि है जो बिग-बैंग के बाद तथा पहले सितारे के अस्तित्व में आने से पहले को समय है। वैज्ञानिको की मने तो यह समय लगभग सौ मिलियन वर्षों का है। कॉस्मोलॉजिस्ट इस अवधि के बारे में बहुत कम जानते हैं। लेकिन उन्होंने यह अनुमान लगाया है कि विज्ञान के सबसे बड़े रहस्य का राज उस गैस से उत्पन्न लंबे-तरंग दैर्ध्य रेडियो उत्सर्जन से मिल सकता है जिसने उस समय ब्रह्मांड को भर दिया था। 

LCRT टीम के एक सदस्य जोसेफ लाज़ियो ने बताया कि डार्क युग के समय कोई सितारा नहीं था परन्तु हाइड्रोजन पर्याप्त मात्रा में थी। इसी हाइड्रोजन ने पहले सितारे के बनने में रॉ मटेरिअल का काम किया। पृथ्वी के बाहर पर्याप्त रूप से बड़े रेडियो टेलीस्कोप के द्धारा हम उन प्रक्रियाओं को समझ सकते है जो पहले के निर्माण के बारे में बता सके। उन्होंने कहा कि शायद इसी के द्धारा हमें डार्क मैटर की प्रकृति के बारे में भी जानकारी मिल सकती है। 

लूनर क्रेटर रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग क्यों:-

NASA Lunar Crater Radio Telescope

पृथ्वी पर उपस्थित टेलीस्कोप इस अवधि की लंबी-तरंग दैर्ध्य रेडियो तरंगो को नहीं पकड़ सकते। ये तरंगें हमारे वायुमंडल के शीर्ष पर उपस्थित आयनों और इलेक्ट्रॉनों की एक परत द्धारा परिलक्षित होती हैं। इस परत को आयनमंडल के नाम से जाना जाता है। पृथ्वी पर उपस्थित लोगो के द्धारा किये जाने वाले शोर से भी इन तरंगो की गुणवत्ता में कमी आती है। जिसके कारण सबसे मंदे सिग्नल हमें प्राप्त होते है। 

चंद्रमा से दूर की तरफ इन संकेतों को प्रतिबिंबित करने के लिए कोई वातावरण नहीं है। इतना ही नहीं चंद्रमा स्वयं पृथ्वी के रेडियो चैट को अवरुद्ध करता है। चंद्रमा का यह दूरस्थ स्थान प्रारंभिक ब्रह्मांड का अध्ययन करने के लिये बहुत उपयोगी होगा। 

जेपीएल के रोबोटिक्स टेक्नोलॉजिस्ट और LCRT परियोजना के प्रमुख शोधकर्ता सप्तर्षि बंद्योपाध्याय ने बताया कि पृथ्वी पर उपस्थित रेडियो दूरबीनें लगभग 10 मीटर या उससे अधिक उचाई पर ब्रह्मांडीय रेडियो तरंगों को नहीं देख सकती हैं। ऐसा हमारे आयनमंडल के कारण होता है। लेकिन चंद्रमा पर रेडियो एंटीना बनाने के पिछले विचार बहुत ही गहन और जटिल रहे हैं। इसीलिए हमें कुछ नया करना पड़ा। 

रोबोट की मदद से उपग्रह का संचालन:-

NASA Lunar Crater Radio Telescope

लंबे रेडियो तरंग दैर्ध्य के प्रति संवेदनशील होने के लिए LCRT को विशाल होना चाहिए। इसके लिये लगभग तीन किलोमीटर चौड़े गड्ढा में एक किलोमीटर चौड़ा एक एंटीना बनाने का विचार किया जा रहा है। पृथ्वी पर सबसे बड़ा एकल-डिश रेडियो दूरबीन – जैसे चीन में 1,600-फुट का एपर्चर गोलाकार टेलीस्कोप (FAST) और अब-इनऑपरेटिव 1,000-फुट चौड़ा Arecibo प्रयोगशाला का इनऑपरेटिव 1,000-फुट चौड़ा (305-मीटर चौड़ा) पर्टो रीको लगभग इसी प्रकार की संरचना में बनाये गये है। 

ये संरचनाएँ प्राकर्तिक कटोरे जैसी संरचना में रखे गए है जहाँ इसे सहारा मिल सके। इस प्रकार की रेडियो दूरबीन के उपकरण गड्ढे में होते है जिसमे रेडियो तरंगो को सम्पूर्ण डिश के द्धारा परावर्तित किया जाता है। रिसीवर को तारो की मदद से केंद्र बिंदु पर रखा जाता है। इस रिसीवर के द्धारा डिश से परावर्तित तरंगो को रिसीव किया जाता है। 

लेकिन इसके आकार और जटिलता के बावजूद FAST उपकरण भी 4.3 मीटर से लम्बी  रेडियो तरंग दैर्ध्य को रिसीव नहीं कर पाता है। जेपीएल में इंजीनियरों और वैज्ञानिको की मदद से बंद्योपाध्याय ने रेडियो टेलीस्कोप के इस वर्ग को इसके सबसे बुनियादी रूप में ढालने की कोशिश की है। 

उनकी इस अवधारणा ने चंद्रमा पर निषेधात्मक रूप से भारी सामग्री के परिवहन की आवश्यकता को समाप्त कर दिया है। वे इस निर्माण प्रक्रिया के लिये स्वचालित रोबोट का उपयोग करेंगे। आने वाली रेडियो तरंगों केंद्रित करने के लिये परवर्तन पैनलों का उपयोग करने के बजाय LCRT में गड्ढे के केंद्र में पतले तारो का एक जल बना होगा। 

इसके बाद एक अंतरिक्ष यान जाल वितरित करेगा तथा एक अलग लैंडर कई हफ्तों तक ड्यूएक्सल (DuAxel) रोवर को जमा करेगा जो डिश बनाने का कार्य करेगा। 

ड्यूएक्सल:-

एक रोबोटिक अवधारणा जिसे जेपीएल में विकसित किया जा रहा है। इस तकनीक में दो एकल-धुरा रोवर्स होते है। ये रोवर्स एक दूसरे से अलग तो हो सकते है परन्तु एक तन्तु के द्धारा आपस में जुड़े रहते है। 

एक रोवर आधे गड्ढे में  रिम पर एक एंकर के रूप में काम करेगा जबकि दूसरा रैप बिल्डिंग करने के लिए नीचे होगा। DuAxel एक चंद्र गड्ढे के अंदर इतने बड़े एंटीना को स्थापित करने के लिए एक स्थायी उपाय है। अलग-अलग एक्सल रोवर्स अलग होने पर भी तार से बंधे होंगे और तनाव का उपयोग करके एंटीना को स्थापित करने के लिये तारो को ऊपर उठा सकते है। 

परियोजना की समस्याएँ और उनका समाधान:-

परियोजना को अगले स्तर तक ले जाने के लिए वैज्ञानिक  NIAC फेज II फंडिंग का उपयोग करेंगे। इस फंडिंग के द्धारा वे दूरबीन और विभिन्न मिशन दृष्टिकोणों की क्षमताओं को निखारने का कार्य करते हुए आने वाली चुनौतियों की पहचान भी करेंगे। इस चरण के दौरान टीम की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक तार की जाली का डिजाइन है। तारों के बीच अपने परवलयिक आकार और सटीक रिक्ति को बनाए रखने के लिए जाली को मजबूत और लचीला बनाना होगा। इतना करने के बाद भी उपकरण को हल्का रखने की भी आवश्यकता है।

जाली तो तापमान सहने के योग्य भी बनाना होगा। यह क्षमता न्यूनतम तापमान 175 डिग्री सेल्सियस तथा अधिकतम 125 डिग्री सेल्सियस की होनी चाहिये। ड्यूएक्सेल रोवर्स को पूरी तरह से स्वचालित बनाना भी एक चुनौती है। निर्णय लेने की प्रक्रिया में एक मानव ऑपरेटर के द्धारा चलित होना चाहिए। 

एक समस्या यह भी है की रेडियो तरंगो के लिए शांत वातावरण की आवश्यकता है। अभी तो चंद्रमा का दूरस्थ क्षेत्र शांत है परन्तु चीन और अन्य देशो का भविष्य में चंद्रमा की दूरस्थ सतह पर काम करने की योजना है। जिससे परियोजना के परिणाम प्रभावित हो सकते है। 

अगले दो वर्षों के लिए, LCRT टीम अन्य चुनौतियों और प्रश्नों की पहचान करने के लिए काम करेगी। भविष्य में इस प्रकार की परियोजना का एक नई उपलब्धि होगी। इस परियोजना के सफल होने पर पृथ्वी से दूर रोबोट के प्रयोग से किसी संरचना का निर्माण करना भी आसान होगा। 

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Reference:- Jet Propulsion Laboratory

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